मन चिंतित और कुंठित हो जाता है..
शब्दो में ऐसा प्राण वायु भरेंगे ,
दूसरो को इस कदर मजबूर करेंगे
एक दिन वो इनके रचित
इस भवसागर में डूब मरेंगे
दुखो की समीक्षा की जाती है
सुखों को जिया जाता है
इस दुनिया में है कुछ लोग
दुखो का व्यवसाय करते है
इनकी लेखनी के बल से
हंसते लोग निर्बल हो जाते है..
सुखी लोग दुखी हो जाते है..
इसमें साथ देते है इनका
कुछ सिरफिरे आशिक,
होता है एक तरफा प्यार
जिनका नही करते इजहार
वक्त हाथ से निकल जाता है
तब होता है एहसास
मैं बोला था काश...!
शब्द नही होते इनके पास
तब व्यक्त करता है
दुख का व्यवसायी
इनके शब्दो को लेकर
कलम दवात स्याही..
दुखो के व्यवसाय में
वो प्रेमी भी आते है
जिनको उनकी प्रेमिका
बीच अधर में लटका जाती है
शुक्रिया इन प्रेमिकाओं का
जो इन्हें साहित्यकार बना जाती है।।
(२)
फिर आते है कुछ क्रांतिकारी
एवं राजनीतिक कलमकार..
समाज के स्वघोषित ठेकेदार
बहुत बड़ा है इनका दुखो का व्यापार
कलम की धार से सुखों का संहार
फिर शुरू होता समाज में
सुनियोजित दुखो का व्यावसाय
दुखड़ा समाज का दिखाते है
अपना मुखड़ा सुधारने के लिए
धीरे - धीरे पुरे राष्ट्र में
शुरू हो जाता है इनका
दुखो का व्यापार
यही लगाता है इनका बेड़ा पार
तख्ता पलट के लिए
समाज का दुखी होना जरूरी है
पर सुखी समाज में इनका
दुखित क्रांति करना
ना जाने कैसी मजबूरी है ?
सत्ता की लालच में
इनके कोरा कागज पे
सुखी जनता दुखित होती है
असत्य फैलाना भी
एक मानसिक बीमारी है..!
यहां दुखो के व्यवसाय में
अनगिनत प्राप्त होती आय
इसके आड़ में सभाएं होती
बड़ा मुद्दा बनता है
सामाजिक समरसता और
आर्थिक न्याय...!
कुछ यूं झूठ की बुनियाद पर
चलता है दुखो का व्यवसाय।।
बढ़िया। उधेड़ दिया आपने।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद एवं आभार सर❤️🌻
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका बहुत आभार मनोज जी। स्वागत है आपका मेरे इस नए ब्लॉग पर।
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