Sunday, October 29, 2023

धर्म संकल्प

मेरा गिरना भी झरने की तरह होगा 
बादल की तरह उठना होगा 
झरने में गिरना प्यास बुझाना मुझे नही आता
मैं खड़ा पर्वत के नीचे झरना मेरे ऊपर गिरेगा
झरने से गिर नदी बनकर बह सकता हू
लेकिन उसमे डुबकी नहीं लगाऊंगा
किनारे से भी प्यास नहीं बुझाऊंगा
मैं जो हू शेषनाग सा हूं 
कालिया मत समझना
भगवान का शैय्या हूं
ताता थैया का स्थान नही
जब तक सांस रोके हूं 
सागर की लहरे शांत है
शस्यश्यामलांचला की विकलता
मेरे भीतर क्रोध की ज्वाला
भड़क उठी तो क्या विस्मय 
बोलो भारत माता की जय।।
 
©शिवम




Saturday, October 7, 2023

इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे

फिल्मों और मीडिया वालो को पैसे देकर अपने बारे में जो नैरेटिव फैलाए या बनाए है कई सालो से दुनियां के कुछ तथाकथित उच्च स्तर के खुफिया विभाग वाले उसी को लोग सच मान बैठें है। देखा जाय तो इनके असफल ऑपरेशन को भी फिल्मों में एक सफल ऑपरेशन बताकर उसपर पर्दा डालने की कोशिश की गई है। मीडिया में बढ़ा चढ़ा कर ऐसे प्रस्तुत किया जाता है की दुनिया के किसी भी कोने में कोई व्यक्ति पेड़ के पीछे खड़ा होकर चाट पकौड़ी खा रहा हो या मूत रहा हो, ये सब देख लेते है।खासकर भारत में ऐसे सुनी सुनाई कहानियों को लोग हवा देने लग जाते है, ये मिथक जोर शोर से कथक करता हुआ नजर आता भी है। अरे ये दुनिया के सबसे ताकतवर लोगो में से एक है इनसे कोई नहीं उलझ सकता है, ये अदृश्य है...! चीजे इससे भी ज्यादा पेचीदा है वास्तव में देखा जाय तो।

हमारे देश में देखा जाय कुछ भी बड़ा हमला हो जाय कही तो लोग इंटेलिजेंस फेलियर बोलना शुरु कर देते है की साहब खूफिया एजेंसियां सो रही है। अपने देश के इंटेलिजेंस पर सवाल खड़ा करने वाले उन तथाकथित उच्च स्तर की एजेंसियों से तुलना करने लग जाते है बिना कुछ जाने और समझे।
जबकि हमारी खुफिया एजेंसियों की जानकारी एकदम सटीक रहती हैं। ना कोई दिखावा रहता है ना कोई प्रदर्शन। परदे के पीछे रहकर वो अपना काम बखूबी निभाते है ,बात ये ही रहती है उसपर अमल कितना किया जा रहा है? बहुत बारी देखा गया है की जब इनकी रिपोर्ट को सरकारों द्वारा न मानने पर देश को खामियाजा भुगतना पड़ा है। चीन की नाक के नीचे रक्तविहीन तख्तापलट कर सिक्किम का भारत के राज्य के तौर पर विलय करवाने का काम हो या उससे पहले पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश की स्थापना करना हो ये सब बिना एक मजबूत खुफिया विभाग के संभव नही था। दुश्मन देश की सेना में शामिल होकर उनसे सलामी ठोकवाना हमारे ही देश के खुफिया विभाग वाले कर सकते है। किसी को कानों कान खबर नहीं लगती है , बात साफ है हम जो चाहते है , दिखाते है सिर्फ़ उतना ही दुनिया भर के लोग देख और समझ पाते है। 

अब कुछ बोलेंगे की इतनी ही खुफिया विभाग मजबूत थी तो देश के प्रधामंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कैसे हो गई?
तो बात बता दू जो सुनने में आता है एक दम साफ तरीके से की इन्हे आगाह किया गया था की सुरक्षा कर्मियों को बदल ले ,इन्हे सुझाव दिया गया था जिसको इन्होंने ने नही माना फिर वही हुआ जिसका डर था..! जिन्होंने हत्या की कौन जानता था की राष्ट्र की सुरक्षा का शपथ लेने वाले राष्ट्र अध्यक्ष के लिए भक्षक बन जाएंगे। जान बचाने वाले जानी दुश्मन बन साबित होंगे लेकिन हमारे खुफिया /सुरक्षा एजेंसियों को भनक लग गई थी अब इनकी रिपोर्ट को नही माने कोई तो इसमें इनका क्या फेलियर? यही हाल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी का था वो रैली में गए थे जहां जाने से मना किया गया था उन्हे खुफिया विभाग वालो द्वारा लेकिन नही माने और कल के अखबार में एक दुखद समाचार छप गया था।सब चीज से खिलवाड़ कर लेना चाहिए लेकिन इंटेलिजेंस रिपोर्ट से बिलकुल भी नहीं।सुनने में तो ये भी आता है कारगिल के समय में भी इनके रिपोर्ट को दरकिनार किया गया था।तब सरकार शांति समझौता करने में व्यस्थ थी। नतीजा क्या हुआ सबने देखा ये कोई बताने वाली बात नही है।

 2014 के बाद से जब से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जी को बनाया गया है तब से आप देख सकते है की हमारा खुफिया विभाग कितना बेहतरीन कार्य रहा हैं। कश्मीर में आतंकवाद से लेकर पुरे देश में फैले नक्सलवाद का कमर टूट चुका है। खुफिया विभाग मजूबती के साथ सक्रिय क्या हुई देश विरोधी ताकते अपने आप निष्क्रिय गई। वरना पशुपति से तिरुपति तिरुपति तक खून खराबा होता था और लाल आतंक जाल फैला हुआ था। बात वही है न फैसले लेने की मजूबत राजनीतिक इच्छाशक्ति जिसका समर्थन पाकर खुफिया विभाग वालो ने आतंकवाद की कब्र खोद के रख दी है। पहले इनकी रिपोर्ट पर कारवाई उतनी नही होती थी जितना की अब हो रहा हैं। जैसे इंदिरा जी के समय एक्शन लिया जाता था बिलकुल वैसे ही कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। पठानकोट एयर बेस पर हमला हो , उड़ी हो या पुलवामा हमला इन सभी इस्लामिक जिहादी हमलों का मुहतोड़ जवाब दिया गया है शुरु में लोग यहां भी इंटेलिजेंस फेलियर बोलते थे लेकिन गुरु सब जानते है चूक कहा हुई थी.. 370 हटने के बाद जो कुटाई हुई है आतंकियों की वो देखने लायक है..! कई महीनों से कश्मीर एक दम शांत है कुछ घटनाओं को छोड़ दे तो। परेशान तो भारत के खुफिया एजेंसियों की हिटलिस्ट में शामिल आतंकी है जिन्हे कोई अज्ञात आकर ठिकाने लगा दे रहा है। कनाडा हो या पाकिस्तान इन अज्ञातो को घंटा फर्क पड़ता है उनका काम है ठोकना ठोक रहे है।

लश्कर के जिहादी हो या खालिस्तानी सबके स्थान विशेष में गोलियां ठोककर ये अज्ञात गायब हो जा रहे हैं। आतंकी सरगना Let हाफिज सईद के लौंडे को उठाकर चलती कार में अगले दिन ठोक दिए सब बाकी सब तो रॉ की साजिश है पाकियों की भाषा में ,पिछले साल कंधार हाईजैक में शामिल आतंकी ठोक गया था। एक तरह से देखा जाय तो वध हो रहा है वध वो भी चुन चुनकर हो रहा है अज्ञात लोगो द्वारा कभी दो पहिया वाहन तो कभी कार से। अमेरिका में सुना हु ये एक्सीडेंट होता है देश विरोधियों का..! बात वही है हमारे यहां हमले करके आनंद लेने वालो को ये नहीं पता की जब हम मुस्कुराते है तो तांडव होता है। इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे।ना जाने कौन है ये अज्ञात जो कर रहे है आतंकियों पर घात, उतार रहे है मौत के घाट नही वध कर रहे है वध। अदृश्य ताकतों को सलाम पर्दे के पीछे रहकर करते शत्रुओं का काम तमाम।

 बाकी धर्मो रक्षति रक्षितः🔥

Friday, October 6, 2023

कौवो का पूजनीय होना

 ये कर्कश स्वर सुनने को आतुर हो जाते लोग
श्राद्ध पक्ष में निष्ठुर से करुण स्वर हो जाता है
 "कांव कांव"
कौवो का घूमना गांव गांव 
फिर विलुप्त हो जाना एक पल को,
जैसे पल में धूप पल में छांव
पुत्र खोजता है नंगे पांव,
की जूठार दो भोजन चढ़ावा
पूर्वजों का पेट भर जाए
तृप्त हो जाय आत्मा
आशीर्वाद दे परमात्मा..!

जिसकी हरदम होती रही अवहलेना
कौंवो का श्राद्ध पक्ष में पूजनीय होना
दर्शाता है उचित समय और स्थिति 
आने पर सबका होता है सम्मान 
ना समय से पहले कुछ मिला न बाद।।

Sunday, October 1, 2023

जब परते खुलती है तो तरह तरह के शर्तो का पता चलता है।

1937 से लेकर 1948 गांधी जी को पांच बार नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए नामित किया गया पर एक बार भी उन्हें इस पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया। खुद नोबेल फाउंडेशन अपनी इस चूक को एक ऐतिहासिक गलती मानता है।पता नही कैसी गलती थी जो विंस्टल चर्चिल जैसे रक्त पिपासु को भी नोबेल दिलवा दी थी। मुझे शुरू से ही लगता है सम्मान पर गिद्ध बैठे हुए हैं जिसको चाहेंगे उसी को मिलेगा आप अपनी छवि सुधारने में अपना चरित्र बदल लेते है। हद है चाचा नेहरू ने सेना रखने से मना कर दिया था विटो तक नहीं लिया शांति के श्वेत कबूतर उड़ाने के लिए पर इन्हे भी कहा मिला विश्व का ये तथाकथित सम्मान। सबसे ख़ास बात क्या की दो बार दो व्यक्तियों को मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया है। पहली बार एरिएक्सेल कार्फल्डट को 1931 में और दूसरी बार संयुक्त राष्ट्र के महासचिव डैग डैमरसोल्ड को 1961 में दिया गया था। 1974 में नियम बना दिया गया कि मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाएगा।

1906 में जब शांति का नोबेल युद्धवीर अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट को दिया गया तो इसके पतन का रास्ता का ऐसा खुला की आज तक बंद नहीं हुआ। 2012 में यूरोपियन संघ तक को मिल गया था जिसकी विभिन्न प्रकार के सैन्य अभियानों में संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है।
बात वही है न जो सम्मान हेनरी किसिंजर, यासर अरफात और बोगिन जैसों दिया जा सकता है , तो गांधी जी और नेहरू को क्यों नही दिया गया? 
वैसे आप नोबेल की पृष्ठभूमि देख लीजिए तो इसके पीछे स्व प्रेरणा से उत्पन्न मानव या विश्व कल्याण का भाव नहीं था। डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के जीवन में ही 1888 में गलती से एक अखबार ने मृत्यु का समाचार छाप दिया, "मौत के सौदागर की मृत्यु।" इसी सोच से उसने अपने धन के एक हिस्से का ट्रस्ट बनाकर वसीयत में घोषित किया कि उसके ब्याज की रकम से कल्याणकारी कार्य करने वालों को सम्मानित किया जाए। नोबेल स्वयं औद्योगिक पूंजीवाद की उपज था, इसलिए उसकी दृष्टि वहीं तक जाती थी।

बाकी हमारे देश में ही विदेशी सम्मान की चाटुकारिता जारी रही। अहिंसा परमो धर्म वाली बकलोलियां धरी की धरी रह गई सबकी। शांति का नोबेल छोड़िए क्या साहित्य में मुंशी प्रेमचंद नहीं थे? बहुत से ऐसे लोग थे जिनके आगे ये तथाकथित सम्मान का कोई अस्तित्व नही है।आज लोग दो कौड़ी का मैगसेसे पा जाते है तो उनका हल्ला हु मच जाता है मतलब क्या ही बोला जाय? तथाकथित सम्मानों से आंकलन शुरू हो जाता है व्यक्ति विशेष का... जब परते खुलती है तो तरह तरह के शर्तो का पता चलता है। बाकी मैं उजड़ा हु इतिहास एक एक पन्ना उजड़ा है