अब चूंकि 30 सीटों के साथ मुस्लिम लीग पार्टी और जिन्ना का सत्ता में आने का सपना पूरा नहीं होता सकता था इसलिए उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, बिहार व बंगाल में तथाकथित रूप से उस समय कि कांग्रेस पर प्रशासन की मदद से "मतदाता सूची में बदलाव, सरकारी अफसरों के पक्षपात और तथाकथित रूप से वोट चोरी" के आरोप लगाए। लीन ने समुदाय विशेष से कहां कि 'आपका वोट अभी सुरक्षित नहीं है तो आगे क्या होगा' और अविश्वास की खाई को और गहरा कर दिया।
जिन्ना ने 17 जनवरी 1946 को भाषण दिया और "Glancy-Khizar Axis" (सरकार व उस समय के प्रशासन/संवैधानिक संस्थाओं जैसा कुछ का गठजोड़) की निंदा की, प्रशासन द्वारा लीग की चुनावी गतिविधियों में अवैध हस्तक्षेप का आरोप लगाया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया।
इन्हीं सब घटनाओं ने आगे चलकर "डायरेक्ट एक्शन डे" जिसमें हजारों भारतीय मारे गए व गृहयुद्ध जैसी कंडिशन बन गई के होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पाकिस्तान की मांग को और तेज कर दिया व अंततः भारत का विभाजन होकर पाकिस्तान बना और जिन्ना के सांप्रदायिक ईगो को संतुष्टि मिली।
खैर, वो समय दूसरा था ये समय दूसरा हैं। किरदारों व दलों के नाम बदल चुके हैं, लेकिन भावनाएं अभी भी वो ही है। लेकिन बढ़िया बात ये है कि अब हमारे पास इतिहास से मिले सबक है इसलिए हमें "इतिहास को स्वयं को दोहराने" से रोकना होगा। हां, मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं। किसी egoistic व सत्ता को अपनी वंशानुगत जागीर समझाने वाले के लिए फिर से भारत को खंडित नहीं होने दिया जा सकता है।
Peace 🕊️
~पुष्पराज आर्या
यह विषय हमें बताता है कि इतिहास सिर्फ बीती बातें नहीं है, बल्कि आने वाले समय के लिए सीख भी है। जिन्ना के समय में सत्ता और अहंकार ने देश का बंटवारा कर दिया, यह बात आज भी समझने लायक है। सत्ता की भूख और धर्म के नाम पर बांटना किसी भी देश को कमजोर कर देता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम आज के समय में सावधान रहें, आपसी भरोसा और एकता को मज़बूत करें और इतिहास से सीख लेकर आगे बढ़ें।
ReplyDelete