लोकनाथ के समोसे हो या चौफटका के पास प्रयाग से बढ़िया कहीं समोसे मिले तो कोई बताए... सीएमपी कॉलेज के पास जूस का ठेला लगाने वाला कहता मिल गया की हम भी इसी कॉलेज से पढ़े है साहब.. हमने कहा वाह.... ! गए हम प्रयाग थे इश्क हमें जौनपुर से हो गया .. दिल है दिल बहक गया या पिघल गया वो मिले या ना मिले फिर कभी लेकिन बेनीराम इमरती वाले का पता मिल गया .. इससे बढ़िया कोई इमरती तो पूरे भारत में कोई नही बनाता होगा.... इसके आगे तो देहाती रसगुल्ला भी कुछ भी नही है... नेतराम कचौड़ी वाले को तो भूल ही गया वर्ल्ड फेमस तो ई हो है लेकिन पुराना इलाहाबादी कहता है मत जहिया एकरे ईहा गद्दार हैं सब मुखबिरी किया रहा आजाद का.... आजाद से याद आया साइंस फैकल्टी से होते हुए मुस्लिम हॉस्टल वाला रास्ता पकड़कर आजाद पार्क पहुंच जाना ... क्या कहना लगता है सारे दृश्य सामने आ गए हो .. रुह कांप जाती है और मन उदास सा हो जाता है .. आजाद पार्क की मनहुसियत गजब है कभी न खत्म होने वाली जो महसूस करते है वो समझते है...! वैसे तो पूरे प्रयागराज में चौड़ी सड़कें है ... यूनिवर्सिटी में पढ़ने लिखने वाले बहुत है लेकिन अब पहले जैसा माहौल कहा ... वो रंगत नहीं है एक मुर्दा शहर बनकर रह गया है जहा लोग अपने अरमानों और सपनो को जिंदा करने आते है ... पूरा पूर्वांचल बसा है यू ही नही "ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट" नाम मिला है ... अच्छा अब दारा गंज स्टेशन के मच्छर बहुत बेचैन काटने को ... निकलता हु यहां से...😅
उजड़ा पन्ना
Wednesday, July 31, 2024
लिख दिया प्रयाग के राग को...!
अब तो कई महीने हो जाते हैं कुछ लिखे भी.. क्या लिखूं डर सा लगता हैं लिखने जाता हु तो भूल जाता हूं आगे क्या लिखूं? लिखना मुश्किल हो जाता है कभी कभी न चाहते हुए लिखना छोड़ना पड़ता है। आज तो कई दिनों बाद मैं लिख रहा हूं.. प्रयास रहेगा रोज लिखूं... जीवन में बहुत कुछ खोया हु और बहुत कुछ पाया भी हूं पिछले कई सालों में... प्रेम हुआ पर मिला नहीं, पढ़ा लिखा मगर कलेक्टर बना नही... सोच रहा हु लिखता ही रहूं क्या पता लेखक ही बन जाऊं..! प्रयागराज रहने के बाद चला जीवन क्या है? संघर्ष करना पड़ता है जीवन में कुछ पाने के लिए.. संगम किनारे बैठकर सोचने से भी कुछ नहीं होता है लहरों में डुबकी लगाना पड़ता है.. जॉर्ज टाउन की कॉफी शाम को पीने के बाद , रात में नींद नहीं आती पढ़ते रहो रात भर.. वैसे इश्क कर लो किसी लड़की से ,वो भी रात भर सोने नही देती है... सुबह की नींद खुलने के बाद लक्ष्मी चौराहे की चाय की चुस्की और चेहरे की मुस्की क्या ही कहना... कभी कभी दिल किया तो त्रिपाठी चौराहे पर चले जाना जहा शाम को सचिव साहब से लेकर बीबीसी पत्रकार तक दिख जाते हैं... दोस्तो के पास बाइक है तो सिविल लाइन बस बस अड्डे के पास "बन मस्का और चाय" की दुकान वाह क्या ही कहना.... कटरा और यूनिवर्सिटी चौराहे पर शाम की भीड़ लगता है मानो मेला लगा हो बहुत बड़ा...लेकिन आशिकों को मजा तो लल्ला चुंगी पर आता है जिसे पिया मिलन चौराहा तक नाम दे दिया गया... खैर साहित्यकारों की बैठकी होती थी एक जमाने में.... बहुत कुछ बदल गया है इलाहाबाद में...!
Monday, January 29, 2024
प्रेम का प्यासा
हुआ इश्क मुझे तुमसे
न जाने ये कैसी बेचैनी है
मिलो तुम हमसे एक रोज
मुरझाया हुआ हु जैसे एक सरोज
बिन जल के मरुस्थल में
भटक गया हु राह
तुम्हारी चाह में
मृगतृष्णा में खोया हु
आओ तोड़ो भ्रम को
प्रेम की बूंदों से
..............
Wednesday, December 27, 2023
क्या आईएसआई वाले ही है अज्ञात हमलावर ?
कौन है जो लोगों को ठोक रहा है शत्रु देश में घुसकर शत्रुओ को..? "अज्ञात हमलावर" खबरों में,चर्चे में ,अखबार की सुर्खियों में बना हुआ हैं। चुन चुन के ठोके जा रहे है सब अपने ही घर में । किसी को जहर देकर मार दिया जा रहा है तो किसी ऑन द स्पॉट गोली मारकर काम तमाम हो रहा है
किसी को चलती गाड़ी से भेड़ बकरियों की तरह उठा लिया जा रहा बाद में 72 हूरो के पास पहुंचा दिया जा रहा हैं। इसमें कोई सक नही हैं की जितने भी एनआईए के हिट लिस्ट में है धीरे धीरे सब मारे जा रहे है सबके मारे जाने की स्थिति एक सी हैं।
सवाल तो बहुत से उठते है साहब क्या ये काम भारतीय खुफिया एजेंसियों का है? क्या ये रॉ की साजिश है? मैं कहता हू अगर रॉ की साजिश है तो एक्सपोज करके दिखाए पाकिस्तान और पाकिस्तानी सेना। कहा गई इनकी दुनिया की टॉप की खुफिया एजेंसी आईएसआई जो इनके सामने से इनके आकाओं को ठोककर चले जा रहे है ये "अज्ञात हमलावर"। बाकी हवा तो बनता ही रहेगा की सब रॉ की साजिश है क्योंकि मारे जाने वाले सब भारत में हुए आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड और साजिशकर्ता रहे है। पाकिस्तान में तो जनाब बच्चा भी रोने लग जाय तो सब कहते है " रॉ की साजिश है " ये तो हालात हैं इस मुल्क के।
बात करते है न्यूक्लियर पॉवर होने की पीछे से कोई अज्ञात घात करके चला जा रहा है। इन्हे कानों कान खबर नही लग रही है जिसे लग रही है उसके माथे में लग रही गोली...! मेरे ख्याल से ये भी हो सकता है कि अज्ञात हमलावर दो चार को ठोके होंगे उसका फायदा लेकर पाकिस्तानी फौज सबको टपकाने में लगी हुई है की मारो इन जाहिलो को हमें अब इनका काम नही है। ये पड़े पड़े राशन उठा रहे है और गले की फांस बने हुए है। वैसे भी काम निकलने के बाद ये कच्छे और मोजे बेचने वाली फौज किसी को नही पहचानती है। इनके यहां इतनी अंधेरगर्दी मची हुई है की इनके नेता अब देश की फौज को ही भर भर की गालियां देते हैं। सुनने में तो ये भी आता है कि आईएसआई वाले कार से निकलते थे दिन दहाड़े उनको उठा लेते थे जो इनके खिलाफ किसी भी तरह की आवाज उठाए हो या इनसे बगावत की बू आ रही हो। ये भी मानना गलत नही होगा कि जितने ठोके गए है उन्हे यही लोग ठोके हो "अज्ञात हमलावर" के नाम पर। कहानी साफ सुथरा है कि इन्हे जरूरत है इस समय पैसों की जो इन्हे कही से मिलते हुए नजर नही आ रहे है कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा इन्हे पाने के लिए..!
हा कुछ लोगो का यह भी मानना हैं की FATF का दबाव हो सकता है। पाकिस्तान ने FATF को भरोसा दिया था कि वह अपनी जमीन पर आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। इतना ही नही जो मारे गए, उन्हें न तो पाकिस्तान सरकार ने, न ही मीडिया ने आतंकवादी के रूप में पहचाना है।
अब जो हो किसी के मानने या न मानने से क्या ही फर्क पड़ता है। रही बात भारतीय खुफिया विभाग की तो इन सबसे दस कदम आगे चल रही है । हो सकता है इनके यहां कुछ अधिकारी हो जिनका विवाद चल रहा हो वहा के हुकूमत से जिनका भरपूर इस्तेमाल हमारी खुफिया विभाग कर रही हो।
मन में तरह तरह के सवाल उठना लाजमी है। इतना रहस्यमयी ढंग से कौन ठोक सकता है किसी को वो भी उनके गढ़ में घुसकर , ना कोई चेहरा ना कोई रूप क्या फर्क पड़ता है उसे छाव हो या धूप ,दिन हो या रात, अपना काम करके निकल जाता है "अज्ञात"...!
Tuesday, November 21, 2023
मैच जिताने में ऑलराउंडर की बड़ी भूमिका होती है
अभी अभी विश्वकप खत्म हुआ हैं। लोगो की भावनाएं आहत हुई है। करीब 20 साल बाद भारत और आस्ट्रेलिया आमने सामने थे फाइनल में इस बार टॉस जीतकर बॉलिंग की ऑस्ट्रेलिया ने पिछली भारत ने की थी जैसे लेकिन कोई फर्क नही पड़ा नतीजा वही निकला 6 विकेट से ऑस्ट्रेलिया ने मैच को जीत लिया। रोहित शर्मा ने जो शॉट खेला था उसके लिए वो जब तक जीवित रहेंगे तब तक खुद को गालियां ही देंगे... कैसे यार मुझे रुकना चाहिए था.... एक दम से 1983 में जैसे सर विवियन रिचर्ड्स ने खेला था और कपिल देव ने कैच पकड़ा था उसी तरह से रोहित शर्मा ने खेला और हेड ने कैच पकड़कर खेल पलट दिया। बात यही नही खतम नही होती है हमने एक ऑलराउंडर खेलाना जरूरी नहीं समझा, सूर्या को खेलाना बेकार ही फैसला था वो बॉलिंग भी नही करा सकता है.. हार्दिक पांड्या का घायल को बाहर होना खल गया लेकिन इतने बड़े देश क्या कोई ऑलराउंडर नहीं मिला बीसीसीआई को.. हद है अश्विन को बाहर बैठा कर रखा फाइनल में शार्दुल भी नही खेला चलो ठीक है कम से कम यार प्रसिद्ध कृष्णा को तो खेला सकते थे। पार्ट टाइमर कोई नहीं था भारत में जिसका डोमेस्टिक में बॉलिंग रिकॉर्ड बढ़िया हो और अच्छा खासा ओवर निकाल ले।
2007 का T20 ,2011 हो या 2013 का चैंपियन ट्रॉफी हम तभी जीते जब खिलाड़ी बदलते गए पिच के हिसाब से विनिंग कांबिनेशन जैसा कुछ नही होता है। Constant कुछ भी नही होता है... सचिन सहवाग तक बॉलिंग करके ओवर निकाल लेते थे जब टीम जरूरत पड़ती थी तो। युवराज रैना जैसे ऑलराउंडर अब नही दिखते है टीम। भले ही फास्ट बॉलिंग ऑलराउंडर नही थे लेकिन टीम संतुलित थी इन स्पिन फेंकने वालो से। शर्म की बात है की टीम में कोई ऑलराउंडर नही है अगर जडेजा को आप बल्लेबाज मानते है तो आप आईपीएल ही देखिए वही सही है आपके लिए... Individual records बनाने में सब लगे ही थे और बनने भी चाहिए.. लेकिन दबाव में खेलने वाला गंभीर बड़ा याद आया यार...इस विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया की टीम आप देख सकते है ऑलराउंडरों और पार्ट टाइम गेंदबाजों की कमी नही थी। मानते है हमने 10 दस मैच लगातार जीते लेकिन सामने 5 बार की चैंपियन थी जो कभी हार नही मानती है अफगानिस्तान के खिलाफ मैक्सवेल के दोहरे शतक बता दिया था की हम हारने वालो में से नही है। कहते है न सब अच्छा हो रहा तो गलत चीजे दिखनी बंद हो जाती है लोगो को वही हुआ है आलोचना किसी को पसंद नही आजकल वैसे भी आलोचना करने वालो का रिकॉर्ड चेक करने लग जाते है आजकल के तथाकथित प्रसंशक लोग। बिना ऑलराउंडर के खेलेंगे तो खामियाजा भुगतना ही था एक न एक दिन ।
2011 भारत विश्वकप टीम में धोनी और गंभीर को छोड़ सारे खिलाड़ी लगभग ठीक ठाक गेंदबाजी कर लेते थे।
1996 की श्रीलंका की विश्वकप टीम में महानामा और कालुविथर्ना को छोड़ सब गेंदबाजी कर सकते थे।
87 की विश्वकप ऑस्ट्रेलिया टीम में 8-9 गेंदबाजी कर सकने वाले लोग थे। ये विश्वकप भारत में हुए थे।
एक बात और विव रिचर्ड्स महान थे और रहेंगे जब दुनियाभर के बड़े क्रिकेटर 60 की स्ट्राइक से वनडे खेलते थे और उसे बेस्ट कहते थे तब विव रिचर्ड्स की 90+ स्ट्राइक थी इतना ही नही तेज गेंदबाज भी थे फिल्डिंग में तो लाजवाब एक दम 3d खिलाड़ी बिना हेलमेट के उस समय के तेज गेंदबाजो को पानी पिला देते थे... महानता ये नही की आपने अपने करियर में क्या किया.. आपने विश्व कप जितवाया की नही अपनी टीम को इसमें में है..।
Friday, November 17, 2023
लहरा दो तिरंगा इस बार कर्णावती के मैदान पर
सचिन के एक चौका मारते ही हमारी उम्मीदें परवान पर थी, अगले ही क्षण कुछ ऐसा हुआ कि किसी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, सचिन आउट हो गये। हमारी उम्मीद टूट गई थी, पर सहवाग को खेलते देख कर मन के अंदर का बच्चा अभी भी हार मानने को तैयार नहीं था। सहवाग- द्रविड़ दोनों आउट हो गये। हम मुक़ाबला हार गये, बहुत रोया , खाना तक नहीं खाया।ग़ज़ब की टीस थी मन ही मन में। कुछ भी अच्छा नहीं लगा कुछ दिनों तक उसके बाद।अगले दिन फिर से हिंदुस्तान समाचार पत्र घर आया और उसके मुख पत्र पर शीर्षक था “आह !! एक सुंदर सपना टूट गया"
आज फिर से उसके बीस साल बाद वही दोनों टीमें फिर से फाइनल में पहुँची हैं, एक क्षण लगता है कि ऑस्ट्रेलिया कही वहीं दर्द फिर से ना दे दे, तो दूसरे क्षण लगता है कि नहीं जो हो गया वो पुरानी बात थी, ये नयी पीढ़ी इस बार ऑस्ट्रेलिया को दर्द देगी और हम तीसरी बार चैंपियन बनेंगे।
पूरी टीम को मेरे जैसे असंख्य प्रशंशकों को तरफ़ से शुभकामनाएँ हैं। हमारी टीम जीते यही कामना है। इस बार चूकना नहीं है, बल्कि साबित करना है कि हम तब भी सर्वश्रेष्ठ थे आज भी है, सिर्फ़ एक दिन के ख़राब खेलने की वजह से हारे थे पर अब वो गलती नहीं होगी।
अपने टीम के हर खिलाड़ी हमारे अपने हैं, हम सबके फैन हैं, हमे सभी पर गर्व है। जाओ और लहरा दो तिरंगा इस बार कर्णावती के मैदान पर।
जय हिन्द
जय भारत🇮🇳
🐼🏏
लेखक:- सतीश यादव
Saturday, November 4, 2023
400 रन बनाने के बाद भी हारी न्यूजीलैंड और टूटे कई रिकॉर्ड
आज पकिस्तान बनाम न्यूजीलैंड का गजब मैच चला। जहां न्यूजीलैंड ने पहली बार वनडे क्रिकेट के इतिहास पहली बार 400 का आंकड़ा छुआ वही पाकिस्तान जीत गई डकवर्थ लुइस नियम से 21 रनों से.. एक पल को ख्याली पुलाव लग रहा था लेकिन ये सब कुदरत का निजाम निकला इसके आगे कोई क्या ही कर सकता हैं। इतिहास तो दोनो तरफ से बने आज देखा जाय तो। रचिन रविन्द्र ने एक एक ही विश्व कप 3 शतक जड़ दिए विश्वकप में न्यूज़ीलैंड की तरफ से सबसे ज्यादा शतक जड़ने के मामले में आगे निकल गए।इस मामले में उन्होंने कप्तान केन विलियमसन (2) को पीछे छोड़ दिया है।विलियमसन यदि शतक से नहीं चूकते तो वह संयुक्त रूप से सर्वाधिक शतक जड़ने वाले पहले बल्लेबाज होते। विलियमसन के अलावा फ्लेमिंग, मार्टिन गप्टिल, स्टायरिस, ग्लेन टर्नर और नाथन एस्टल ने 2-2 शतक जड़े थे।
रचिन रवीन्द्र 23 साल की उम्र में 3 विश्वकप शतक जड़ने वाले पहले बल्लेबाज बन गए हैं। इससे पहले पूर्व भारतीय दिग्गज सचिन तेंदुलकर के नाम 23 साल की उम्र में 2 विश्व कप शतक दर्ज थे, लेकिन अब रचिन रवीन्द्र ने सचिन तेंदुलकर को पीछे छोड़ दिया है..! रविंद्र एक बड़ा कारनामा करते हुए डेब्यू वनडे विश्व कप में 500 रन बनाने वाले दूसरे बल्लेबाज बन गए हैं। इस मामले में उन्होंने इंग्लैंड के विस्फोटक बल्लेबाज जॉनी बेयरस्टो (534 रन, 2019) की बराबरी हासिल कर ली है। रविंद्र एक वनडे विश्व कप संस्करण में न्यूजीलैंड की ओर से संयुक्त रूप से इस मामले में उन्होंने अपने देश के पूर्व दिग्गज क्रिकेटर मार्टिन क्रो (1992) और स्कॉट स्टाइरिस (2007) की बराबरी करते हुए सबसे अधिक 50+ की पारियां खेलने वाले बल्लेबाज बन गए हैं..!
पाकिस्तान के फखर जमां ने न्यूजीलैंड के खिलाफ लगाते 11 छक्के लगाते हुए एक पारी में ज्यादा छक्को का और सबसे तेज शतक लगाते ही इमरान नजीर का 16 साल पुराना रिकॉर्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया जो 2007 में किंग्सटन में विश्व कप मैच में जिम्बाब्वे के खिलाफ इमरान नजीर ने 95 गेंदों में शतक जड़ा था,और 8 छक्के लगाए थे जबकि फखर ने 63 गेंदों में 100 रन बनाए । देखा जाय तो शायद ये पहली बार ऐसा हुआ है की कोई टीम पहली बार 400+ रन बनाती है और उसे बारिश की वजह से डकवर्थ लुईस नियम से हारना पड़े...!
इस विश्व कप में कुछ भी हो जा रहा है नीदरलैंड ने दक्षिण अफ्रीका को हरा दिया और अफगानिस्तान ने इंग्लैंड- पाकिस्तान दोनो को। न्यूज़ीलैंड की टीम अपने शुरू के चार मैच जीती है और लगातार हार भी गई..! रचिन रविंद्र तीन शतको में न्यूज़ीलैंड को 2 में हार मिली है .. अभी तो ये इनका पहला ही विश्वकप है आने वाले समय में इनके और शतक देखने को मिलेंगे।
🏏🐼
Sunday, October 29, 2023
धर्म संकल्प
मेरा गिरना भी झरने की तरह होगा
बादल की तरह उठना होगा
झरने में गिरना प्यास बुझाना मुझे नही आता
मैं खड़ा पर्वत के नीचे झरना मेरे ऊपर गिरेगा
झरने से गिर नदी बनकर बह सकता हू
लेकिन उसमे डुबकी नहीं लगाऊंगा
किनारे से भी प्यास नहीं बुझाऊंगा
मैं जो हू शेषनाग सा हूं
कालिया मत समझना
भगवान का शैय्या हूं
ताता थैया का स्थान नही
जब तक सांस रोके हूं
सागर की लहरे शांत है
शस्यश्यामलांचला की विकलता
मेरे भीतर क्रोध की ज्वाला
भड़क उठी तो क्या विस्मय
बोलो भारत माता की जय।।
©शिवम
Saturday, October 7, 2023
इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे
फिल्मों और मीडिया वालो को पैसे देकर अपने बारे में जो नैरेटिव फैलाए या बनाए है कई सालो से दुनियां के कुछ तथाकथित उच्च स्तर के खुफिया विभाग वाले उसी को लोग सच मान बैठें है। देखा जाय तो इनके असफल ऑपरेशन को भी फिल्मों में एक सफल ऑपरेशन बताकर उसपर पर्दा डालने की कोशिश की गई है। मीडिया में बढ़ा चढ़ा कर ऐसे प्रस्तुत किया जाता है की दुनिया के किसी भी कोने में कोई व्यक्ति पेड़ के पीछे खड़ा होकर चाट पकौड़ी खा रहा हो या मूत रहा हो, ये सब देख लेते है।खासकर भारत में ऐसे सुनी सुनाई कहानियों को लोग हवा देने लग जाते है, ये मिथक जोर शोर से कथक करता हुआ नजर आता भी है। अरे ये दुनिया के सबसे ताकतवर लोगो में से एक है इनसे कोई नहीं उलझ सकता है, ये अदृश्य है...! चीजे इससे भी ज्यादा पेचीदा है वास्तव में देखा जाय तो।
हमारे देश में देखा जाय कुछ भी बड़ा हमला हो जाय कही तो लोग इंटेलिजेंस फेलियर बोलना शुरु कर देते है की साहब खूफिया एजेंसियां सो रही है। अपने देश के इंटेलिजेंस पर सवाल खड़ा करने वाले उन तथाकथित उच्च स्तर की एजेंसियों से तुलना करने लग जाते है बिना कुछ जाने और समझे।
जबकि हमारी खुफिया एजेंसियों की जानकारी एकदम सटीक रहती हैं। ना कोई दिखावा रहता है ना कोई प्रदर्शन। परदे के पीछे रहकर वो अपना काम बखूबी निभाते है ,बात ये ही रहती है उसपर अमल कितना किया जा रहा है? बहुत बारी देखा गया है की जब इनकी रिपोर्ट को सरकारों द्वारा न मानने पर देश को खामियाजा भुगतना पड़ा है। चीन की नाक के नीचे रक्तविहीन तख्तापलट कर सिक्किम का भारत के राज्य के तौर पर विलय करवाने का काम हो या उससे पहले पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश की स्थापना करना हो ये सब बिना एक मजबूत खुफिया विभाग के संभव नही था। दुश्मन देश की सेना में शामिल होकर उनसे सलामी ठोकवाना हमारे ही देश के खुफिया विभाग वाले कर सकते है। किसी को कानों कान खबर नहीं लगती है , बात साफ है हम जो चाहते है , दिखाते है सिर्फ़ उतना ही दुनिया भर के लोग देख और समझ पाते है।
अब कुछ बोलेंगे की इतनी ही खुफिया विभाग मजबूत थी तो देश के प्रधामंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कैसे हो गई?
तो बात बता दू जो सुनने में आता है एक दम साफ तरीके से की इन्हे आगाह किया गया था की सुरक्षा कर्मियों को बदल ले ,इन्हे सुझाव दिया गया था जिसको इन्होंने ने नही माना फिर वही हुआ जिसका डर था..! जिन्होंने हत्या की कौन जानता था की राष्ट्र की सुरक्षा का शपथ लेने वाले राष्ट्र अध्यक्ष के लिए भक्षक बन जाएंगे। जान बचाने वाले जानी दुश्मन बन साबित होंगे लेकिन हमारे खुफिया /सुरक्षा एजेंसियों को भनक लग गई थी अब इनकी रिपोर्ट को नही माने कोई तो इसमें इनका क्या फेलियर? यही हाल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी का था वो रैली में गए थे जहां जाने से मना किया गया था उन्हे खुफिया विभाग वालो द्वारा लेकिन नही माने और कल के अखबार में एक दुखद समाचार छप गया था।सब चीज से खिलवाड़ कर लेना चाहिए लेकिन इंटेलिजेंस रिपोर्ट से बिलकुल भी नहीं।सुनने में तो ये भी आता है कारगिल के समय में भी इनके रिपोर्ट को दरकिनार किया गया था।तब सरकार शांति समझौता करने में व्यस्थ थी। नतीजा क्या हुआ सबने देखा ये कोई बताने वाली बात नही है।
2014 के बाद से जब से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जी को बनाया गया है तब से आप देख सकते है की हमारा खुफिया विभाग कितना बेहतरीन कार्य रहा हैं। कश्मीर में आतंकवाद से लेकर पुरे देश में फैले नक्सलवाद का कमर टूट चुका है। खुफिया विभाग मजूबती के साथ सक्रिय क्या हुई देश विरोधी ताकते अपने आप निष्क्रिय गई। वरना पशुपति से तिरुपति तिरुपति तक खून खराबा होता था और लाल आतंक जाल फैला हुआ था। बात वही है न फैसले लेने की मजूबत राजनीतिक इच्छाशक्ति जिसका समर्थन पाकर खुफिया विभाग वालो ने आतंकवाद की कब्र खोद के रख दी है। पहले इनकी रिपोर्ट पर कारवाई उतनी नही होती थी जितना की अब हो रहा हैं। जैसे इंदिरा जी के समय एक्शन लिया जाता था बिलकुल वैसे ही कार्य सुचारू रूप से चल रहा है। पठानकोट एयर बेस पर हमला हो , उड़ी हो या पुलवामा हमला इन सभी इस्लामिक जिहादी हमलों का मुहतोड़ जवाब दिया गया है शुरु में लोग यहां भी इंटेलिजेंस फेलियर बोलते थे लेकिन गुरु सब जानते है चूक कहा हुई थी.. 370 हटने के बाद जो कुटाई हुई है आतंकियों की वो देखने लायक है..! कई महीनों से कश्मीर एक दम शांत है कुछ घटनाओं को छोड़ दे तो। परेशान तो भारत के खुफिया एजेंसियों की हिटलिस्ट में शामिल आतंकी है जिन्हे कोई अज्ञात आकर ठिकाने लगा दे रहा है। कनाडा हो या पाकिस्तान इन अज्ञातो को घंटा फर्क पड़ता है उनका काम है ठोकना ठोक रहे है।
लश्कर के जिहादी हो या खालिस्तानी सबके स्थान विशेष में गोलियां ठोककर ये अज्ञात गायब हो जा रहे हैं। आतंकी सरगना Let हाफिज सईद के लौंडे को उठाकर चलती कार में अगले दिन ठोक दिए सब बाकी सब तो रॉ की साजिश है पाकियों की भाषा में ,पिछले साल कंधार हाईजैक में शामिल आतंकी ठोक गया था। एक तरह से देखा जाय तो वध हो रहा है वध वो भी चुन चुनकर हो रहा है अज्ञात लोगो द्वारा कभी दो पहिया वाहन तो कभी कार से। अमेरिका में सुना हु ये एक्सीडेंट होता है देश विरोधियों का..! बात वही है हमारे यहां हमले करके आनंद लेने वालो को ये नहीं पता की जब हम मुस्कुराते है तो तांडव होता है। इस तांडव की अग्नि में सब जलकर भस्म हो जाएंगे।ना जाने कौन है ये अज्ञात जो कर रहे है आतंकियों पर घात, उतार रहे है मौत के घाट नही वध कर रहे है वध। अदृश्य ताकतों को सलाम पर्दे के पीछे रहकर करते शत्रुओं का काम तमाम।
बाकी धर्मो रक्षति रक्षितः🔥
Friday, October 6, 2023
कौवो का पूजनीय होना
ये कर्कश स्वर सुनने को आतुर हो जाते लोग
श्राद्ध पक्ष में निष्ठुर से करुण स्वर हो जाता है
"कांव कांव"
कौवो का घूमना गांव गांव
फिर विलुप्त हो जाना एक पल को,
जैसे पल में धूप पल में छांव
पुत्र खोजता है नंगे पांव,
की जूठार दो भोजन चढ़ावा
पूर्वजों का पेट भर जाए
तृप्त हो जाय आत्मा
आशीर्वाद दे परमात्मा..!
जिसकी हरदम होती रही अवहलेना
कौंवो का श्राद्ध पक्ष में पूजनीय होना
दर्शाता है उचित समय और स्थिति
आने पर सबका होता है सम्मान
ना समय से पहले कुछ मिला न बाद।।
Sunday, October 1, 2023
जब परते खुलती है तो तरह तरह के शर्तो का पता चलता है।
1937 से लेकर 1948 गांधी जी को पांच बार नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए नामित किया गया पर एक बार भी उन्हें इस पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया। खुद नोबेल फाउंडेशन अपनी इस चूक को एक ऐतिहासिक गलती मानता है।पता नही कैसी गलती थी जो विंस्टल चर्चिल जैसे रक्त पिपासु को भी नोबेल दिलवा दी थी। मुझे शुरू से ही लगता है सम्मान पर गिद्ध बैठे हुए हैं जिसको चाहेंगे उसी को मिलेगा आप अपनी छवि सुधारने में अपना चरित्र बदल लेते है। हद है चाचा नेहरू ने सेना रखने से मना कर दिया था विटो तक नहीं लिया शांति के श्वेत कबूतर उड़ाने के लिए पर इन्हे भी कहा मिला विश्व का ये तथाकथित सम्मान। सबसे ख़ास बात क्या की दो बार दो व्यक्तियों को मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया है। पहली बार एरिएक्सेल कार्फल्डट को 1931 में और दूसरी बार संयुक्त राष्ट्र के महासचिव डैग डैमरसोल्ड को 1961 में दिया गया था। 1974 में नियम बना दिया गया कि मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाएगा।
1906 में जब शांति का नोबेल युद्धवीर अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट को दिया गया तो इसके पतन का रास्ता का ऐसा खुला की आज तक बंद नहीं हुआ। 2012 में यूरोपियन संघ तक को मिल गया था जिसकी विभिन्न प्रकार के सैन्य अभियानों में संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है।
बात वही है न जो सम्मान हेनरी किसिंजर, यासर अरफात और बोगिन जैसों दिया जा सकता है , तो गांधी जी और नेहरू को क्यों नही दिया गया?
वैसे आप नोबेल की पृष्ठभूमि देख लीजिए तो इसके पीछे स्व प्रेरणा से उत्पन्न मानव या विश्व कल्याण का भाव नहीं था। डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के जीवन में ही 1888 में गलती से एक अखबार ने मृत्यु का समाचार छाप दिया, "मौत के सौदागर की मृत्यु।" इसी सोच से उसने अपने धन के एक हिस्से का ट्रस्ट बनाकर वसीयत में घोषित किया कि उसके ब्याज की रकम से कल्याणकारी कार्य करने वालों को सम्मानित किया जाए। नोबेल स्वयं औद्योगिक पूंजीवाद की उपज था, इसलिए उसकी दृष्टि वहीं तक जाती थी।
बाकी हमारे देश में ही विदेशी सम्मान की चाटुकारिता जारी रही। अहिंसा परमो धर्म वाली बकलोलियां धरी की धरी रह गई सबकी। शांति का नोबेल छोड़िए क्या साहित्य में मुंशी प्रेमचंद नहीं थे? बहुत से ऐसे लोग थे जिनके आगे ये तथाकथित सम्मान का कोई अस्तित्व नही है।आज लोग दो कौड़ी का मैगसेसे पा जाते है तो उनका हल्ला हु मच जाता है मतलब क्या ही बोला जाय? तथाकथित सम्मानों से आंकलन शुरू हो जाता है व्यक्ति विशेष का... जब परते खुलती है तो तरह तरह के शर्तो का पता चलता है। बाकी मैं उजड़ा हु इतिहास एक एक पन्ना उजड़ा है
Thursday, September 28, 2023
दुखो का व्यवसाय
मन चिंतित और कुंठित हो जाता है..
शब्दो में ऐसा प्राण वायु भरेंगे ,
दूसरो को इस कदर मजबूर करेंगे
एक दिन वो इनके रचित
इस भवसागर में डूब मरेंगे
दुखो की समीक्षा की जाती है
सुखों को जिया जाता है
इस दुनिया में है कुछ लोग
दुखो का व्यवसाय करते है
इनकी लेखनी के बल से
हंसते लोग निर्बल हो जाते है..
सुखी लोग दुखी हो जाते है..
इसमें साथ देते है इनका
कुछ सिरफिरे आशिक,
होता है एक तरफा प्यार
जिनका नही करते इजहार
वक्त हाथ से निकल जाता है
तब होता है एहसास
मैं बोला था काश...!
शब्द नही होते इनके पास
तब व्यक्त करता है
दुख का व्यवसायी
इनके शब्दो को लेकर
कलम दवात स्याही..
दुखो के व्यवसाय में
वो प्रेमी भी आते है
जिनको उनकी प्रेमिका
बीच अधर में लटका जाती है
शुक्रिया इन प्रेमिकाओं का
जो इन्हें साहित्यकार बना जाती है।।
(२)
फिर आते है कुछ क्रांतिकारी
एवं राजनीतिक कलमकार..
समाज के स्वघोषित ठेकेदार
बहुत बड़ा है इनका दुखो का व्यापार
कलम की धार से सुखों का संहार
फिर शुरू होता समाज में
सुनियोजित दुखो का व्यावसाय
दुखड़ा समाज का दिखाते है
अपना मुखड़ा सुधारने के लिए
धीरे - धीरे पुरे राष्ट्र में
शुरू हो जाता है इनका
दुखो का व्यापार
यही लगाता है इनका बेड़ा पार
तख्ता पलट के लिए
समाज का दुखी होना जरूरी है
पर सुखी समाज में इनका
दुखित क्रांति करना
ना जाने कैसी मजबूरी है ?
सत्ता की लालच में
इनके कोरा कागज पे
सुखी जनता दुखित होती है
असत्य फैलाना भी
एक मानसिक बीमारी है..!
यहां दुखो के व्यवसाय में
अनगिनत प्राप्त होती आय
इसके आड़ में सभाएं होती
बड़ा मुद्दा बनता है
सामाजिक समरसता और
आर्थिक न्याय...!
कुछ यूं झूठ की बुनियाद पर
चलता है दुखो का व्यवसाय।।
Tuesday, September 19, 2023
स्याही के दलाल
स्याही के दलाल
तय करते है
कलम लिखेगा रंग गुलाल या
या खून लाल...
ना इन्हे कोई मलाल
चंद पैसों में बिककर
बनना चाहते है
मालामाल..
मिलिए इनसे
ये हैं स्याही के दलाल
काले रंग से कहते है पन्ना भरा जाता है
लाल रंग क्रांति का होता है
इससे लिखेंगे इतिहास
कहते है क्रांति खून से होती है क्योंकि
खून का रंग होता है लाल
मिलिए इनसे
ये हैं स्याही के दलाल
मैने भी नहीं किया अभी तक कोई मलाल
काले अक्षरों में प्रश्नपत्र लिखा होता होता है
उत्तर पुस्तिका को नीले से भरा जाता है
लेकिन मूल्यांकन तो करता है लाल
जो ये भी तय कर देते है
कौन उत्तीर्ण होगा इस साल....
मिलिए इनसे
ये है स्याही के दलाल..!
कुल मिलाकर स्याही लाल
करता है जमकर बवाल
तब क्रांति क्रांति ना होकर
भ्रांति हो जाती है
मेरे कहने पर ना मिलिए
भूलकर भी इनसे क्योंकि
ये है लाल स्याही के दलाल
क्षण भर में सर कर देंगे हलाल
फिर बोलेंगे लाल सलाम...
इसको न्यायोचित ठहरा देंगे
क्योंकि क्रांति का रंग होता है लाल।
फिर भी मिलना है तो
मिलिए इनसे
ये है स्याही के दलाल...!
©शिवम
Saturday, September 16, 2023
वनडे विश्वकप में सचिन
सचिन ने 1992 में पहली बार विश्व कप में शिरकत की। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में हुए विश्व कप में सचिन ने आठ मैचों की 7 पारियों तीन अर्धशतकों की मदद से 283 रन बनाए। इस दौरान इनका औसत 47.16 और स्ट्राइक रेट 84.73 था।
विश्व कप 1996
चार साल बाद दूसरा विश्व कप सचिन को अपनी घरेलू धरती
पर खेलने का मौका मिला और क्रिकेट प्रेमियों को उनसे काफी उम्मीदें थी। 1996 में भारत , पाकिस्तान और श्रीलंका की संयुक्त मेजबानी में हुए इस टूर्नामेंट में मास्टर ब्लास्टर 523 रन बनाकर अपने समर्थकों की उम्मीदों पर खरा उतरे।इन्होंने ने सात मैचों में इतनी ही पारियों में 87.16 की औसत व 85.87 की स्ट्राइक रेट से दमदार बल्लेबाजी की। केन्या के ख़िलाफ कटक में 18 फरवरी को उन्होंने 138 गेंदों में 15 चौके व एक छक्का लगाते हुए 127 रन की पारी खेली। यह इनकी पहली सेंचुरी थी। इसके बाद इनके बल्ले से एक और शतक निकला दिल्ली में 2 मार्च को श्रीलंका के खिलाफ 137 गेंदों में 8 चौको और 5 छक्को की मदद से 137 बनाए।
यह शतक टीम को काम नही आ सका क्योंकि श्रीलंका इस मैच को 6 विकेट जीत लिया था।
विश्व कप 1999
अब बात करते है सचिन के तीसरे विश्वकप की जो 1999 में खेला गया था। इंग्लैंड, हॉलैंड और स्कॉटलैंड के गेंदबाजी के लिए माकूल हालात में सचिन का बल्ला कुछ खास नहीं चला। उन्होंने सात मैचों की सात पारियों में एक सेंचुरी की मदद से 42.16 की औसत व 90.03 की स्ट्राइक रेट के साथ 253 रन बनाए। इस विश्व कप में इनका एकमात्र शतक केन्या के खिलाफ ब्रिस्टल में बना। जब वह 101 गेंदों में 140 रन बनाकर नाबाद पैवेलियन लौटे जो कि उस समय उनका विश्व कप में सर्वश्रेष्ठ स्कोर था। इसमें उन्होंने 16 चौके और 3 तीन छक्के लगाए थे।
विश्व कप 2003
2003 विश्व कप में सचिन अपने पूरे शबाब में थे और दक्षिण अफ्रीका, केन्या व जिम्बाब्वे की संयुक्त मेजबानी में हुए इस टूर्नामेंट में इन्होंने जमकर खेला और 11 मैचों की इतनी ही पारियां खेलते हुए एक शतक और छह अर्धशतकों की बदौलत 61.18 की औसत से 673 रन बनाए। इनके इस सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की मदद से भारत फाइनल तक पहुंचा था। बाकी सचिन ने नामीबिया के खिलाफ पीटरमैरिट्जबर्ग में 23 फरवरी 2003 को 151 गेंदों में 18 चौके लगाते हुए 152 रन बनाकर विश्व कप में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में सुधार किया था।
विश्व कप 2007
2007 का विश्व कप के कड़वी यादों कोई नही भुला सकता हैं। शर्मनाक और रुला देने वाला था भारत के क्रिकेट प्रेमियों को। वेस्ट इंडीज की धरती में खेले गए इस विश्व कप में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और जिस कारण वह पहले ही राउंड में बाहर हो गया। इस टूर्नामेंट में सचिन भी एकदम फ्लॉप रहे थे। वह तीन मैचों में 32.00 की मामूली औसत के साथ केवल 64 रन ही बना पाए थे, जिसमें एक अर्धशतक शामिल था। हालांकि स्ट्राइक रेट 110.34 का था।
विश्व कप 2011
अपना छठा, आखिरी विश्व कप सचिन ने 2011 में खेला था और भारत ने श्रीलंका को फाइनल में 6 विकेट से हराया था। सचिन को एक लंबा इंतजार करना पड़ा टीम को विश्व चैंपियन बनाने के लिए और भारत को 28 साल। किसी भी बेहतरीन खिलाड़ी का एक सपना रहता है की वो अपनी टीम एक विश्व कप तो जरूर ही जीतवावे। भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश की संयुक्त मेजबानी में हुए इस विश्व कप में सचिन का प्रदर्शन भी दमदार रहा। नौ मैचों में नौ पारियां खेलीं और इनके बल्ले से दो शतक और दो अर्धशतक निकले। सचिन ने 58.55 की औसत और 91.98 रन की स्ट्राइक रेट के साथ 482 रन बनाए थे।
इंग्लैंड के खिलाफ बेंगलुरू में 27 फरवरी को खेलते हुए इन्होंने 115 गेंदों में 120 रन बनाए, जिसमें 10 चौके व 5 छक्के शामिल थे। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नागपुर में 12 मार्च को सचिन के बल्ले से फिर शतक आया 101 गेंदों में आठ चौके व तीन छक्के उड़ाते हुए 111 रन की पारी खेल डाली । यह उनका विश्व कप में छठा शतक था। चुकी इंग्लैंड के खिलाफ मैच टाई रहा था और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हम हार गए थे रोमांचक मुकाबले में।
बेमिसाल सचिन
'सचिन के टीम में रहते भारत को 27 मैचों में जीत मिली। इन 27 पारियों में उन्होंने तीन शतक और 12 अर्धशतक लगाए थे। सचिन ने 65.91 की औसत और 90.50 की स्ट्राइक रेट के साथ 1516 रन बनाए हैं। इनकी मौजूदगी के दौरान भारत ने 16 विश्व कप मैच हारे। इस दौरान उन्होंने 16 पारियां खेलते हुए 40.12 की औसत व 83.37 की स्ट्राइक रेट से 642 रन बनाए इसमें इनके दो शतक व तीन अर्धशतक शामिल है।
सचिन ने भारत के तरफ से खेलते हुए सबसे ज्यादा रन बनाने का गौरव प्राप्त किया। 1992 से लेकर 2011 के बीच 6 विश्व कप में 45 मैचों की 44 पारियों में 56. 95 की औसत से 2278 रन बनाए और स्ट्राइक रेट 88.98 का रहा। 6 शतक और 15 अर्धशतक कुछ कहाता है
सचिन ! सचिन !
सचिन! सचिन !सचिन.... की गूंज यूंही नही थी ग्राउंड हो टीवी देखते हुए या फिर किसी दूर दराज के गांव में रेडियो सुनता हुआ कोई... सबको यकीन था सचिन है किस बात का डर... तमाम परेशानियों के बीच में सचिन की पारी लोगो के जीवन में खुशियां बटोरने का काम करती थी।
क्रिकेट एक जुनून बन गया था सचिन के दौर में। स्कूल से बंक मारकर लौंडे क्रिकेट देखने चले जाते थे चाय टपरी वाले के दुकान पर मेरे जैसे लोग एक रेडियो स्कूल में छिपाकर लेकर जाते थे और क्रिकेट सुनते थे... !
©शिवम🏏
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