बहुत खूब 👌ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैंना पास रहने से जुड़ जाते हैंयह तो एहसास के पक्के धागे हैंजो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं
धन्यवाद आशीष जी।❤️💙
बहुत सुन्दर रचना
आपका बहुत धन्यवाद मनोज जी💙♥️
बहुत खूब ... काफी है एक बूँद प्रेम की ...
बहुत सुंदर रचना,
यार, ये कविता पढ़कर सच में दिल में हल्की-सी कसक महसूस हुई। तुम्हारे शब्दों में प्रेम की तड़प साफ झलकती है। “मुरझाया हुआ सरोज” और “मरुस्थल की मृगतृष्णा” जैसी तुलना बहुत गहरी लगी। मुझे लगा जैसे कोई सचमुच अपने प्रिय की प्रतीक्षा में प्यासा भटक रहा हो।
बहुत खूब 👌
ReplyDeleteना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं
ना पास रहने से जुड़ जाते हैं
यह तो एहसास के पक्के धागे हैं
जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं
धन्यवाद आशीष जी।❤️💙
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद मनोज जी💙♥️
Deleteबहुत खूब ... काफी है एक बूँद प्रेम की ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteयार, ये कविता पढ़कर सच में दिल में हल्की-सी कसक महसूस हुई। तुम्हारे शब्दों में प्रेम की तड़प साफ झलकती है। “मुरझाया हुआ सरोज” और “मरुस्थल की मृगतृष्णा” जैसी तुलना बहुत गहरी लगी। मुझे लगा जैसे कोई सचमुच अपने प्रिय की प्रतीक्षा में प्यासा भटक रहा हो।
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