Monday, January 29, 2024

प्रेम का प्यासा

हुआ इश्क मुझे तुमसे 
न जाने ये कैसी बेचैनी है
मिलो तुम हमसे एक रोज
मुरझाया हुआ हु जैसे एक सरोज
बिन जल के मरुस्थल में
भटक गया हु राह
तुम्हारी चाह में 
मृगतृष्णा में खोया हु
आओ तोड़ो भ्रम को
प्रेम की बूंदों से
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7 comments:

  1. बहुत खूब 👌


    ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं
    ना पास रहने से जुड़ जाते हैं
    यह तो एहसास के पक्के धागे हैं
    जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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    1. आपका बहुत धन्यवाद मनोज जी💙♥️

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  3. बहुत खूब ... काफी है एक बूँद प्रेम की ...

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  4. बहुत सुंदर रचना,

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  5. यार, ये कविता पढ़कर सच में दिल में हल्की-सी कसक महसूस हुई। तुम्हारे शब्दों में प्रेम की तड़प साफ झलकती है। “मुरझाया हुआ सरोज” और “मरुस्थल की मृगतृष्णा” जैसी तुलना बहुत गहरी लगी। मुझे लगा जैसे कोई सचमुच अपने प्रिय की प्रतीक्षा में प्यासा भटक रहा हो।

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