Tuesday, May 27, 2025

संगत की लत

उसकी रात की नींद पूरी नहीं हुई थी और वह इस अधनींदे अवस्था में अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवा रहा था और तभी उसका फोन बजता है और जब वह उसे उठाता है तो तब उसकी दुसरी ओर वह एक लड़की की जानी पहचानी आवाज़ रहती है जो बच्चों जैसी चंचलता अपने वाणी में छलकाते हुए पूछती है "चाय पियोगे?", वह उस आवाज़ को कभी मना नहीं कर सकता था क्योंकि उस आवाज में एक अनकहा आकर्षण था जिसका वह आदि हो चुका था। उस लड़की के चाय के आमंत्रण को स्वीकारते हुए जब वह अपनी गाड़ी मोड़ कर जा रहा था तो वह एक ऐसी ग्लानि से ग्रसित था जैसी किसी शराब की लत लगे इंसान को अपनी मेहनत की कमाई शराब में खर्च करते हुए होती है क्योंकि वह जानता था कि उसके पास ऑफिस के लिए तैयार होने को सिर्फ आधा ही घंटा है पर तब भी वह इस कीमती समय को उसके ऊपर न्योछावर करने जा रहा था। वह रास्ते भर अपने आप को कोसता कि आखिर क्यों उसे कभी "ना" नहीं बोल पाता, आखिर क्यों अपना जरूरी से जरूरी काम छोड़कर उसके साथ वक्त बिताना उसकी आदत सी बन चुकी थी? क्यूं ऐसा होता था की उसका मुस्कुराता-चहकता चेहरा ही उस लड़के को संसार में अपनी प्रसन्नता का एकमात्र स्रोत लगने लगा था और वह उस पर आए दुख और पीड़ा को अपने ऊपर लेने को आतुर रहता था। उसने बार-बार अपने आप को यह समझाने की कोशिश की थी कि यह प्रेम नहीं है ,यह तो मात्र तुम्हारे अंदर की खालीपन को भरने की तुम्हारी लालसा ही है पर रात भर अपने आप को तरह-तरह के मनोवैज्ञानिक कारण देकर समझाने का प्रयास और उस लड़की से दूरी बनाकर रखने के अपने आप से किए गए वादे उस लड़की के एक कथन पर धरे के धरे रह जाते थे।

इसी तरह आधा अपने विचारों से लड़ता और आधा इस दुनिया के सामने सामान्य बनने का ढोंग करता हुआ वह लड़का उस लड़की के पास पहुंचा, वह लड़की उसे देर आने के लिए बनावटी डांट लगा रही थी (उस लड़के के वैचारिक ऊहापोह ने उसकी गाड़ी की गति धीमी कर दी थी और ट्रैफिक में उलझा दिया था)जिसे सुन इस लड़के के चहरे एक हल्की सी मुस्कान दिखने लगी, पता नहीं क्यों लड़कों को अपनी पसंदीदा महिला की डांट सुनना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता है। उसके बाद उन दोनों ने चाय पी और यूं तो चाय, चाय जैसी ही होती है पर इस लड़की के साथ हर एक घूंट कुछ अलग ही आनंद देता था। उसके बाद उस लड़की के आदेशनुमा आग्रह पर दोनों ने साथ नाश्ता भी किया, महिने के 15 दिन नाश्ता भुला देने वाला और बाकी के 15 दिन सिर्फ दो समोसे का कामचलाउ नाश्ता करने वाला लड़का एक Full-fledged नाश्ता उस लड़की के साथ कर रहा था पर असल बात तो यह थी उस लड़के की भूख पेट की नहीं,आत्मा की थी।

नाश्ता करने के बाद उसे विदा करने के बाद वह बेतरतीबी से ऑफिस के लिए तैयार हुए और अपनी गाड़ी लेकर ऑफिस के लिए चल पड़ा,उसे पता था कि वह ऑफिस के लिए लेट हो चुका है जिसके लिए उसे वहां कोई बहाना बनाना पड़ेगा और हो सकता है कोई सीनियर इसके लिए उसे फटकार भी लगा दे पर वह खुश था और रस्ते भर मुसकुराते हुए जा रहा था क्यूंकि शायद शराबी को उसके लिए शराब की एक और बोतल मिल गई थी।

लेखक- अंशुमान "निर्मोहिया"

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