लेखक- श्रीयुत उमाशंकर
[मुसलमान राजनीतिज्ञों की राजनीति भारत को मुस्लिम और हिन्दू-भारत में बाँट देना चाहती है। इस सम्बन्ध में उनकी तीन स्कीमें अब तक प्रकाश में आ चुकी हैं। लेखक महोदय ने इस रोचक लेख में उन सबका बहुत ही अच्छे ढंग से परिचय दिया है।]
पहले-पहल 'पाकिस्तान' की रूप-रेखा कैम्ब्रिज विश्व-विद्यालय में पढ़नेवाले एक भारतीय मुसलमान युवक ने खीची थी। उसका पाकिस्तान पंजाब, अफ़ग़ानिस्तान, काश्मीर और सिन्ध के प्रथम अक्षरों और बलूचिस्तान के आखिरी 'स्तान' लेकर बना था। अर्थात् पंजाब से 'प' लिया, अफ़ग़ानिस्तान से 'अ', काश्मीर मे 'क', सिन्ध से 'स' और विलोचिस्तान से 'स्तान' लिया । इस तरह 'पाकिस्तान' शब्द बन गया । उसके 'पाकिस्तान' की तह मे यह भाव खेल रहा था कि भारत के मुसलमान भारत के पाकिस्तान से लेकर यूरोप के तुर्किस्तान तक एक मुस्लिम राज्य क़ायम करें । परन्तु बहुत दिनों तक किसी ने इस स्कीम पर विशेष ध्यान नही दिया । अन्त में, सन् १९३० के मुस्लिम लीग के लखनऊवाले अधिवेशन में उसके सभापति स्वर्गीय सर इक़बाल ने इस योजना का जोरदार शब्दों में समर्थन किया और भारत के मुसलानों से अपील की कि वे पाकिस्तान को अस्तित्व में लाने की चेष्टा करें। फलतः पाकिस्तान के बनाने की चेष्टा होने लगी। स्वर्गीय फजले हसेन आदि ने सर इक़बाल के साथ सहयोग किया। मुस्लिम देशों के साथ लिखा- पढ़ी हुई, पर भारत के मुसलमानों ने काफी दिलचस्पी नहीं ली। इसका परिणाम हुआ कि वह स्कीम खटाई में पड़ गई।
इधर ब्रिटिश सरकार ने संघ-शासन कायम करने की घोषणा करके प्रान्तों को स्वराज्य दे दिया । देश में नई जागृति का संचार हुआ। पर हमारी कांग्रेस ने उस संघ-योजना का विरोध किया और विरोध मुस्लिम लीग ने भी किया, पर दोनों के विरोध में भिन्नता है । कांग्रेस ने संघ-योजना का विरोध राष्ट्रीय विचार से किया । पर मुस्लिम लीग ने मुस्लिम-संस्कृति की रक्षा तथा भारत में अपनी एक स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखने के लिए विरोध किया।
प्रस्तावित संघ-विधान मे ब्रिटिश भारत के मुसललमानों को ३३ फ़ीसदी जगहें, मिली है, हालाँकि मिलनी चाहिए १२ फ़ीसदी, जगहें, क्योंकि २१ फ़ीसद ही उनकी भारत में आबादी है। इस तरह वे संघ-असेम्बली की २५० जगहो में ८० के हकदार हो गये हैं। पर देशी राज्यों में यह साम्प्रदायिक बँटवारा लागू नहीं है। इसलिए मुसलमान डरते हैं कि उन्हें यहाँ ३३ फ़ीसदी जगहें नही मिल सकती हैं, यही कारण है कि वे संघ योजना का विरोध कर रहे हैं और पृथक् मुस्लिम संघ का स्वप्न देख रहे हैं।
'पृथक्, मुस्लिम संघ' अर्थात् 'पाकिस्तान' क़ायम करने के लिए देश के मुसलमानों में काफ़ी आन्दोलन खड़ा हो -, गया है। पंजाब और दक्षिण-हैदराबाद में उसके, संचालन के लिए आफ़िस तक खुल गये है। ब्रिटिश सरकार के डर से मुसलमानों ने अपने आफ़िसों के नाम 'पृथक् मुस्लिम संघ आन्दोलनकारी सभा' न रखकर कुछ और ही रखें हैं। हैदराबाद में उनकी जो सभा है उसका नाम है 'मुस्लिम कलचर-सोसाइटी' और पंजाबवाली सभा का नाम है 'मुस्लिम ब्रादरहुड' !
हैदराबादवाली सभा के मंत्री वही सैयद अब्दुल लतीफ़ साहब हैं जिन्होंने मुस्लिम लीग के आदेश से 'पृथक् मुस्लिम संघ' की योजना तैयार की है। लतीफ़ साहब का कहना है कि हिन्दुस्तान एक राष्ट्र नहीं है । यहाँ विभिन्न जातियों के लोग बसते हैं, उनमें सांस्कृतिक ऐक्य नहीं है। इस्लाम और वैदिक धर्म में मौलिक भिन्नता है। सामाजिक रूप में भी दोनों दो हैं। ओर देशों में जहाँ इन विषयों का अभाव है, वहाँ एक भाषा ने कुछ हद तक इस समस्या को सुलझा रखा है, पर भारतवर्ष में इसकी भी कमी है। यहाँ समान भाषा भी एक नहीं है। ऐसी परिस्थिति में भारत अखण्ड नहीं रह सकता है। इसलिए इसे दो भागों में बाँटना जरूरी है। ऐसा नहीं होता है तो मुसलमानों को उन ३८ फीसदी हिन्दुओं के हाथ में अपना जान-माल सौंप देना होगा जो हिन्दुस्तान से इस्लाम को मिटा देना चाहते हैं।
इन्ही सारी बातों को दृष्टि में रखकर लतीफ़ साहब ने भारतवर्ष को उसकी संस्कृति और धार्मिकता के आधार पर पर बांट डाला है। उनकी क़लम ने भारत के १५ टुकड़े कर डाले हैं, जिनमें चार मुसलमानों को दिये गये हैं और बाकी हिन्दुओं को । पहला मुस्लिम मण्डल 'उत्तरी-पश्चिमी मण्डल' है। इसमें पंजाब, सीमाप्रान्त, काश्मीर, खैरपुर, बहावलपुर, सिंध एवं बलूचिस्तान सम्मिलित हैं।
उनकी राय है कि इसके अन्तर्गत जो सीख तथा हिन्दू रियासतें हैं उनको वहाँ से खदेड़कर काश्मीर की पूर्वी सीमा की ओर तथा कांगड़ा के हिन्दू इलाक़े की ओर भेज दिया जाय तथा जम्मू और काश्मीर के महाराज को भी कुछ मुआवजा देकर उनका राज्य मुस्लिम भाग में मिला देना चाहिए। दूसरा मण्डल 'उत्तरी-पूर्वी विभाग' है । इनमें आसाम और बंगाल सम्मिलित हैं। वहाँ के हिन्दुओं को बिहार की ओर चला आना पड़ेगा और बिहारी मुसलमानों को बंगाल और आसाम `की ओर आना पड़ेगा। तीसरे मण्डल का नाम है 'देहली - और लखनऊ विभाग' । इस विभाग में संयुक्त प्रान्त और बिहार के मुसलमानों को स्थान मिलेगा। इस विभाग में जितने हिन्दू-तीर्थस्थान हैं जैसे- मथुरा, हरिद्वार आदि उन पर हिन्दओं का अधिकार रहेगा। वहाँ चाहें तो हिन्दू रह भी सकते हैं। वही उन्हें किसी तरह का कष्ट नही होगा । चौथा विभाग है 'दक्षिणी विभाग।' इसमें हैदराबाद और मद्रास सम्मिलित हैं। इन चारों मण्डलों के अलावा उस स्कीम में यह प्रबन्ध किया गया है कि राजपूताना, गुजरात, मालवा तथा अन्य देशी राज्यों के रहनेवाले मुसलमान वहाँ से अपना बोरिया-बधना समेट कर मुसलमानी देशी राज्यों में आकर रहेंगे और उन देशी राज्यों से हिन्दू निकालकर मालवा, गुजरात और राजपूताना में रखे जायेंगे। इन मण्डलों के घेरे के बाद देश में जो स्थान बचता है, वहाँ हिन्दू रहेंगे । भाग के अनुसार उनका विभाजन होगा । बंगला , हिन्दी, उड़िया, तेलगू, तामिल, मराठी, गुजराती, कनारी, मलयालम आदि भाषाओं के अनुसार हिन्दूमण्डल के कतिपय विभाग होंगे। हरिजनों को इसमें बहुत सुन्दर स्थान लतीफ़ साहब ने दिया है । उन्हें कहा गया है कि वे जहाँ चाहें रह सकते हैं। हिन्दूमण्डल तो उनका मण्डल रहेगा ही, मुस्लिम मण्डल में भी उन्हें उचित स्थान दिया जायगा । इसी प्रकार बौद्धों, ईसाइयों, जैनों और पारसियों को अधिकार दे दिया गया है कि वे जहाँ चाहें रह सकते है। मुस्लिम मण्डल में उनके धर्म, उनकी भाषा, उनके साहित्य तथा उनकी संस्कृति पर किसी तरह का आघात नहीं पड़ेगा । बेचारे आर्यसमाजी कहाँ रहेंगे, इसका इस योजना में कोई जिक्र नहीं है । उपर्युक्त योजना बनी तो मुस्लिम लीग के ही आदेश से, पर अभी तक लीग ने उसे स्वीकार नहीं किया है । हाँ सिंध की प्रान्तीय लीग ने अपने कराची के अधिवेशन में उसे स्वीकार कर लिया है। मुस्लिम लीग ने इस योजना पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई है, जिसमें मिस्टर जिन्ना, सर सिकन्दरहयातखां, मिस्टर बन्दुल अजीज, ख्वाजा सर नाजिमुद्दीन, सर अब्दुल्ला हारून , सरदार औरंगजेबखाँ तथा नवाबजादा लियाक़तअलीखाँ हैं । देखना है कि आठ करोड़ मुसलमानों के ये स्वयं बने भाग्य-निर्माता क्या करते हैं ।
लतीफ़ साहब की योजना की आलोचना और प्रत्यालोचना खूब हो रही है। भारत के सभी राष्ट्रीय पत्रों ने उसकी निन्दा की है। कितने ही मुसलमानों ने भी उसकी कड़ी आलोचना की है । उसकी आलोचना करते हुए सिन्ध के एक मुसलमान सज्जन ने लिखा था कि ऐसी हरकतें केवल इस देश के लिए ही खतरनाक नही हैं, वरन मुसलमानो सस्कृति के लिए भो खरम्ब है ! इन मुस्लिम मण्डलों में भी किसी तरह इस्लामी संस्कृति खतरे मे खाली नही रहेगी, क्योंकि वह चारों तरफ़ शत्रुओं से घिरी रहेगी। लीग के अन्दर भी कुछ मुसलमान हैं, जो इस स्कीम की खराबियों को महसुस कर रहे हैं। उनका कहना है कि पश्चिमोत्तर-मण्डल तथा उत्तरी-पूर्वी विभाग हिन्दुओ से घिरे रहेंगे । इसलिए ये दोनों मण्डल अपने को खतरे से बाहर नही समझ सकते हैं। दक्षिण-मण्डल की हालत तो बहुत ही शोचनीय होगी । यह मण्डल अपने को बहुत दिनों तक स्वतंत्र नहीं रख सकेगा। जिस तरह मराठों ने १८वीं सदी में निज़ाम को तंग किया था उसी तरह दक्षिण- मण्डल के मुसलमानों को भी मराठे तंग करेगे । उस समय निजाम को बचा रखने के लिए ईस्टइंडिया कम्पनी ने मदद दी थी। परन्तु आज तो ऐसी कोई भी शक्ति नही,जो उन्हें आफ़त से बचा सकेगी । पश्चिम में देहली-लखनऊ-मण्डल है और पूर्व में बंगाल और आसाम-मण्डल है। इन दोनों मण्डलों को भी खतरे से बाहर नहीं समझना चाहिए । जिस तरह मराठों के कारण दक्षिण- मण्डल खतरे में रहेगा, उसी तरह राजपूताने में राजपूतों, सिखों और गोरखों तथा नेपाल में नेपालियों के रहने के कारण ये मण्डल भी अपनी स्वाधीनता बहुत दिनों तक क़ायम नहीं रख सकेंगे । बंगाल और आसाम-मण्डल भी लड़ाकू बिहारियों तथा खूनी नेपालियों के द्वारा सताये जायेंगे । इन्ही कारणों से वे लतीफ़ साहब की योजना को पसन्द नही करते हैं और उसके विरोध में आवाज उठा रहे हैं तथा अपनी दूसरी योजना पेश कर रहे हैं । कलकत्ता के एक मौलवी साहब ने एक नई योजना पेश की है । मिस्टर लतीफ़ का दक्षिण-मण्डल उनकी समझ में मुसलमानों के लिए लाभदायक नहीं होगा ।
वह अन्य मुस्लिम मण्डलों से दूर रहने के कारण खतरे में रहेगा । इसलिए कलकतिया मौलाना साहब ने यह सोचा है कि बिहार और संयुक्तप्रान्त के हिन्दुओं को निकालकर सम्पूर्ण उत्तरी भारत में मुसलमान ही रखे जायें । काश्मीर के महाराज को वे निजाम का राज्य दे देने को तैयार हैं। उनकी राय है कि हैदराबाद के निजाम और काश्मीर के महाराज आपस में राज्य-बदलोअल कर लें ! आप भारत के ११ प्रान्तों में ७प्रान्त मुसलमानों के लिए चाहते हैं। वे प्रान्त ये हैं-सिन्ध, सीमान्त, पंजाब, संयुक्तप्रान्त, बिहार , बंगाल और आसाम । इस तरह कलकत्ता से लेकर क्वेटा तक और हिमालय से लेकर विन्ध्याचल तक मौलवी साहब का 'पाकिस्तान' फैला रहेगा !
इस योजना को व्यावहारिक रूप देने पर १२,२०,००,००० हिन्दुओं को सिन्ध, सीमान्त, पंजाब, संयुक्तप्रान्त, बिहार, बंगाल और आसाम छोड़कर मद्रास, बम्बई, मध्यप्रान्त और उड़ीसा के दक्षिणी भाग
में जाना पड़ेगा और उन प्रान्तों से ५७,००,००० मुसलमानों को बुलाकर सिन्ध, सीमान्त, पंजाब, संयुक्त-
प्रान्तं, बिहार, बंगाल और आसाम में आबाद किया जायेगा। पर इस योजना में सबसे बड़ी कठिनता यह है
कि एक तरफ सघन आबादी हो जाती है और दूसरी तरफ विरल । बम्बई, मद्रास, दक्षिण-उड़ीसा और मध्यप्रान्त की आबादी ८ करोड़ ६० लाख है, जिसमें
मुसलमान ५७ लाख के लगभग हैं। अगर ५७ लाख
मनुष्य वहाँ से निकाल दिये जाएँ तो ८ करोड़ ३ लाख
रह जायेंगे । मौलाना साहब चाहते है कि ११ करोड़ २० लाख उत्तरी भारत के हिन्दू दक्षिणी भारत भेज दिये जायें । क्या कोई भी भला आदमी यह अनुमान लगा सकता है कि जिस प्रदेश का क्षेत्रफल ३,३६,४८५ वर्गनील है, वहाँ १९ करोड़ २० लाख आदमी आंट भी सकते हैं ? अगर ऐसा हुआ तो आबादी इतनी घनी हो जायगी कि उस भाग के लोग भूखो मरने लगेंगे । वहाँ तो हर वर्गमील मे ५७१ आदमी रहेंगे और उत्तरी भारत में १३३ आदमी हर वर्गमील मे रहेगे । मौलाना साहब ने केवल मुसलमानों के लाभ के लिए ही यह योजना बनाई है। आपकी योजना से साफ़ पता चलता है कि आपको हिन्दुओं का कुछ भी खयाल नहीं है। कितनी मजेदार बात है कि ११ करोड़ २० लाख हिन्दुओं को खदेड़ कर वह स्थान ५७ लाख मुसलमानों को दे दिया जाय ! बालफ़ोर-कमिटी ने क्या पैलिस्टाइन का विभाजन इसने भी खतरनाक किया है ? फिर भी वही मुसलमान जब स्वयं ऐसा चाहते हैं तंत्र क्यों हल्ला मचा रखा है ? क्या उन्होंने कभी खयाल किया है कि उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत के लोगों को बोली में बहुत फर्क है ? अभी मद्रास की सरकार ने अपने प्रान्त में हिन्दुस्तानी-भाषा जारी की थी, पर उसका यहाँ विरोध हो रहा है और काफ़ी लोग जेल जा चुके है । हिन्दुओं के जितने तीर्थ-स्थान है, वे प्रायः उत्तरी भारत में ही हैं। हिन्दुओं के लिए गंगा स्वर्ग है। क्या मौलाना साहबा के कहने वे से अपने तीर्थतुल्य वासस्थान छोड़ देंगे ?
इधर पंजाब के प्रधानमंत्री माननीय सर सिकन्दर हयात खाँ ने एक नई संघ योजना पेय की है। उन्होंने भारत को सात प्रान्तों में विभक्त किया है । उनके सातों प्रान्त ये हैं- (१) आसाम, बंगाल तथा बंगाल की रियासतें और सिक्कम, (२) बिहार, उड़ीसा, बंगाल के दो-तीन पश्चिमी जिले, (३) संयुक्त-प्रान्त और उसकी रियासतें, (४) मदरास, ट्रावनकोर, मद-ग़म की रियासतें और कुर्ग (५) बम्बई, हैदरावाद, पश्चिमी भारत की रियासतें, मैमूर और मध्य-प्रान्त की रियासतें, (६) राजपूताने की रियासतें (बीकानेर और जेसलमेर को छोड़ कर), ग्वालियर, मध्यभारत 2 और बरार (७) पंजाब, सिन्ध, सीमान्त, काश्मीर, पंजाब की रियासतें, बलूचिस्तान , बीकानेर और - जैसलमेर ।
सर सिकन्दर साहब की इस स्कीम के पेश होने के पहले भारत के ११ प्रान्तों में कांग्रेस का शासन था। इसलिए कांग्रेस की शक्ति को कम करने के लिए उन्हें सबसे पहले विचार करना पड़ा। उनकी इस स्कीम ने आसाम और सीमान्त से कांग्रेस की जड़े उखाड़कर वहाँ मुस्लिम लीग की जड़ें गाढ़ने का विचार किया गया है। केन्द्रीय शासन में तो और भी गड़बड़झाला है। ब्रिटिश इण्डिया में मुसलमानों को ८३ सीटें मिलेंगी और भारतीय रियासतों की ११५ सीटों में से ४२ सीटें मिलेंगी । इन दोनों को मिलाकर केन्द्र में मुसलमानों की संख्या १२५ हो जायगी। जहाँ मुसलमानों को ८२ सीटें मिली हैं, वहाँ सिकन्दरी योजना ने उन्हें १२५ सीटें मिलती हैं।
मै यह मानता हूँ कि सिकन्दरी योजना पाकस्तान की रूप-रेखा नहीं है, पर पाकिस्तान की रूप-रेखा के आधार पर उसकी नींव अवश्य रखी गई है। अपनी लोडरी क़ायम करने के अतिरिक्त जिन्हें राष्ट्र का कुछ भी खयाल है वे तो जरूर कहेंगे कि भारत अखण्ड है और उसके दो भाग नहीं हो सकते। और जो लोग पाकिस्तान का स्वप्न देखते हैं वे अराष्ट्रीय है, उन्हें न देश का कुछ खयाल है, न मुसलमानों का ही कुछ खयाल है। भगवान् ऐसे लोगों को सुबुद्धि दे, हमारा तो यही कहना है।
( स्रोत-सरस्वती पत्रिका --जनंवरी १९४० में प्रकाशित)
भारत को दो भागों में बाँटना कोई आसान बात नहीं है, और सच कहूँ तो ये बिल्कुल गलत भी है। देश की एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। मैं हमेशा सोचता हूँ कि अलगाव की बातें सिर्फ जंग और टकराव को बढ़ावा देती हैं। ये स्कीम्स और योजनाएं तो बस कुछ लोगों के फायदे के लिए बनती हैं, आम जनता के लिए नहीं। मुझे भी लगता है कि हमें आपस में समझदारी से बात करनी चाहिए, न कि फूट डालनी चाहिए।
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