बादल की तरह उठना होगा
झरने में गिरना प्यास बुझाना मुझे नही आता
मैं खड़ा पर्वत के नीचे झरना मेरे ऊपर गिरेगा
झरने से गिर नदी बनकर बह सकता हू
लेकिन उसमे डुबकी नहीं लगाऊंगा
किनारे से भी प्यास नहीं बुझाऊंगा
मैं जो हू शेषनाग सा हूं
कालिया मत समझना
भगवान का शैय्या हूं
ताता थैया का स्थान नही
जब तक सांस रोके हूं
सागर की लहरे शांत है
शस्यश्यामलांचला की विकलता
मेरे भीतर क्रोध की ज्वाला
भड़क उठी तो क्या विस्मय
बोलो भारत माता की जय।।
©शिवम
वाह! शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद ❤️💙
Deleteबहुत खूब, सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद रूपा जी।
Deleteस्वागत है आपका ब्लॉग पर 🌻
भाईसाब, सच कहूं तो ये तो बस कविता नहीं, एक ऐलान लग रहा था, आपकी लाइनें सिर्फ शब्द नहीं थीं, हर एक में आग थी, आत्मसम्मान था। और जिस तरह आपने भारत माता की जय से क्लोज़ किया, भाई, पूरा वाइब बदल गया। वो फिनिशिंग पंच एकदम ज़बरदस्त था! लगा जैसे कोई योद्धा बोल रहा हो, शांत है, पर कमज़ोर नहीं।
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