Sunday, October 29, 2023

धर्म संकल्प

मेरा गिरना भी झरने की तरह होगा 
बादल की तरह उठना होगा 
झरने में गिरना प्यास बुझाना मुझे नही आता
मैं खड़ा पर्वत के नीचे झरना मेरे ऊपर गिरेगा
झरने से गिर नदी बनकर बह सकता हू
लेकिन उसमे डुबकी नहीं लगाऊंगा
किनारे से भी प्यास नहीं बुझाऊंगा
मैं जो हू शेषनाग सा हूं 
कालिया मत समझना
भगवान का शैय्या हूं
ताता थैया का स्थान नही
जब तक सांस रोके हूं 
सागर की लहरे शांत है
शस्यश्यामलांचला की विकलता
मेरे भीतर क्रोध की ज्वाला
भड़क उठी तो क्या विस्मय 
बोलो भारत माता की जय।।
 
©शिवम




5 comments:

  1. वाह! शानदार प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब, सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत धन्यवाद रूपा जी।
      स्वागत है आपका ब्लॉग पर 🌻

      Delete
  3. भाईसाब, सच कहूं तो ये तो बस कविता नहीं, एक ऐलान लग रहा था, आपकी लाइनें सिर्फ शब्द नहीं थीं, हर एक में आग थी, आत्मसम्मान था। और जिस तरह आपने भारत माता की जय से क्लोज़ किया, भाई, पूरा वाइब बदल गया। वो फिनिशिंग पंच एकदम ज़बरदस्त था! लगा जैसे कोई योद्धा बोल रहा हो, शांत है, पर कमज़ोर नहीं।

    ReplyDelete