भीग जाने दो खुद को
भीगने का अलग ही मजा है
ना भीगे जीवन में तो
ये जीवन नही एक सजा है
देखो मानता हु
दुख दर्द संताप पीड़ा से भरे हुए हो
खुद की नजरों में गिरे हुए हों
इसीलिए भीग जाओ बरसात में
रोकर आसूओ को बह जाने दो
मन को हल्का हो जाने दो
और गुप्त रह जायेगा रोना भी
बरसात में सब धूल जाएगा
क्षण भर में सब बह जाएगा
बरसात की आड़ लेकर खुलकर रोलो
भीतर जो कुछ इस बरसात में धोलो...
©शिवम
कितनी सच्ची बात कही है की बरसात बस भीगने के लिए नहीं होती, उसमें खुद को धोने का एक मौका भी छिपा होता है। हम सब कभी न कभी रोना चाहते हैं, पर छुप-छुप के। और आपने तो बड़ी प्यारी सी तरकीब बता दी, बरसात में रो लो, कोई नहीं देखेगा।
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