श्राद्ध पक्ष में निष्ठुर से करुण स्वर हो जाता है
"कांव कांव"
कौवो का घूमना गांव गांव
फिर विलुप्त हो जाना एक पल को,
जैसे पल में धूप पल में छांव
पुत्र खोजता है नंगे पांव,
की जूठार दो भोजन चढ़ावा
पूर्वजों का पेट भर जाए
तृप्त हो जाय आत्मा
आशीर्वाद दे परमात्मा..!
जिसकी हरदम होती रही अवहलेना
कौंवो का श्राद्ध पक्ष में पूजनीय होना
दर्शाता है उचित समय और स्थिति
आने पर सबका होता है सम्मान
ना समय से पहले कुछ मिला न बाद।।
कितनी गहरी बात कही है, कौवा जिसे लोग आम दिनों में नजरअंदाज़ कर देते हैं, वही श्राद्ध में सबसे अहम हो जाता है। ये दिखाता है कि वक्त और हालात इंसान या किसी भी जीव का मूल्य बदल सकते हैं। मुझे खासतौर पर वो पंक्ति पसंद आई जिसमें धूप-छांव जैसा जीवन का खेल दिखाया गया है। सच कहूँ तो ये सब हमें याद दिलाता है कि किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय आने पर वही सबसे जरूरी बन सकता है।
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