नवविवाहिता स्त्रियों द्वारा लगातार होती पतियों की हत्या की खबरों पर कुछ नये तरीके के अनोखे नारीवादी पनपे हैं जो नारीवाद की आड़ में वैचारिक लीचड़पने का नया अध्याय लिख रहे हैं।
इनके नवनारीवाद के अनुसार सारी ग़लती उस स्त्री के प्रेमी की है और इसके समर्थन में ये अपनी थ्योरी देते फिर रहे हैं कि - "मारने वाला हमेशा पुरुष ही होता है", "पुरुष ही पुरुष को मार रहा है", "औरत की तो ग़लती कम है", "पुरुष नहीं मारता तो वो नहीं मारती"..... इत्यादि। ऐसी विशुद्ध वैचारिक विष्ठा नहीं करनी चाहिए।
कुछ नवनारीवादी लोग माता-पिता की ग़लती भी निकाल रहे हैं किंतु उस हत्यारी पत्नी को सबसे कम दोषी बता रहे हैं। इनके अनुसार सबसे अधिक दोषी वो प्रेमी है जिसने हत्या की, फिर वो माता-पिता जिन्होंने लड़की का जबरन विवाह कराया और फिर भी कहीं अगर पाव भर संभावना बची हो तो उस बेचारी अबला स्त्री को भी दोषी कहा जा सकता है।
अबे अक्ल के अंधों दिमाग अगर किसी दारुबाज नशेड़ी की तरह सूअर के नाले में ना लुढ़का हो तो उसका इस्तेमाल किया करो। चिरकुटबुद्धि नारीवादियों तुम्हें ये पता होना चाहिए कि सबसे अधिक दोषी वही औरत है, उसके बाद माता-पिता और फिर सबसे आखिर में आता है प्रेमी। पहले दोषारोपण के इसी टियर लिस्ट को समझते हैं फिर इनके बुद्धिहीन तर्कों पर आयेंगे।
ऐसी घटनाओं में प्रेमी एक कॉन्ट्रैक्ट किलर जैसा है, आमतौर पर ऐसे किलर्स पैसे या अन्य सुविधाएं लेकर हत्या करते हैं, पर चूंकि ये प्रेमी है तो ये पैसे ना लेकर अन्य सुविधाओं या यूं कहें कि उस लड़की के लालच में हत्या करता है या हत्या में सहयोग करता है, ये सोचकर कि इसके बाद ये मेरी हो जायेगी, इसकी संपत्ति या ससुराल से मिलने वाली संपत्ति भी और दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे। उस प्रेमी पर हत्या का मुकदमा चले और फांसी हो लेकिन सबसे अधिक दोषी वो नहीं है।
अब आते हैं माता-पिता पर, लगभग 80% मामलों में माता-पिता को पता होता है कि उनकी बिटिया का अफेयर कहां है और उसके बावजूद वो जबरन कहीं और शादी कर देते हैं। ऐसा करने की उनके पास अपनी वजह होती है और मैं उन तर्कों पर नहीं जाना चाहता कि उन्होंने अपनी जाति बिरादरी हैसियत या बेटी के भविष्य की चिंता इत्यादि की वजह से ऐसा किया या इस सनक में कि बेटी का ढूंढा गया अच्छा रिश्ता भी हम क्यों स्वीकारें। इस बहस का कोई लाभ नहीं है और इसमें दोनों पक्षों के अपने तर्क-वितर्क होंगे जो अपनी अपनी जगह सही होंगे।
किंतु यहां एक सवाल उठता है कि जब उस लड़की को माता-पिता का तय किया रिश्ता मंजूर नहीं था और प्रेमी के साथ ही रहना था तो जो हिम्मत उसने विवाह के पश्चात हत्या करने/कराने में दिखाई वैसी ही हिम्मत विवाह के पूर्व क्यों नहीं दिखाई? माना कि माता-पिता गलत ही कर रहे थे तो तुमने तब उसको क्यों स्वीकार किया और स्वीकार किया तो विवाह के बाद ऐसा कदम क्यों उठाया?
अब आते हैं उस हत्यारी पत्नी पर, ऐसे मामलों में सबसे अधिक दोषी यही होती है। पहले तो माता-पिता द्वारा तय किये गये व्यक्ति से शादी करती है और फिर अपने प्रेमी को हायर करके अपने ही पति की हत्या करती है या हत्या में सहयोग करती है और फिर अपने प्रेमी के संग फरार हो जाती है।
अब आते हैं नवनारीवादियों के बुद्धिहीन तर्कों पर।
ये जो कहते फिरते हैं कि औरत कत्ल नहीं कर सकती, पुरुष ही पुरुष की हत्या करते हैं, वहीं औरत की सहायता करते हैं।
अबे चमगादड़ों वो खबरें नहीं पढ़ते क्या जिसमें औरत सोते हुए पति को काट डालती है या धोखे से जहर देकर मार देती है, उसमें तो पुरुष पुरुष को नहीं मारता, महिला ही मारती है। इसपर क्या कहोगे?
अब पुरुष के मारने पर आते हैं, चलो माना कि मारने वाला पुरुष था तो ये महिलाएं उसके साथ फरार क्यों हो जाती हैं? अपने पति की हत्या की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाती हैं?
अगर महिला ना चाहे तो किसी प्रेमी की हिम्मत नहीं जो उसके पति को खरोंच भी पहुंचाये।
अतः ऐसे बेवकूफाना तर्क नहीं देने चाहिए।
प्रेमियों से बस नैतिकता के नाते ये उम्मीद की जा सकती है कि जब तुम्हारी प्रेमिका की शादी अन्यत्र हो गई है तो उसको जाने दो, संभव हो तो उसको भी समझाओ कि जो होना था हुआ अब अपने परिवार पे ध्यान दे। या हिम्मत दिखानी है तो प्रेमिका के संग मिलकर शादी से पहले हिम्मत दिखाओ और विवाह कर लो।
या फिर शादी के बाद भी अगर किसी भी वजह से उसको रिश्ता पसंद नहीं तो बोलो कानूनी प्रक्रिया के तहत संबंध विच्छेद करे और फिर दोनों को जो करना हो करो।
किंतु जो हत्या जैसा अपराध करने की मानसिकता रखता हो उससे नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी ही होगी।
माता-पिता को चाहिए कि अपने जाति बिरादरी धर्म हैसियत और इज्ज़त की जरूरत से अधिक फ़िक्र करना बंद करें। आज जबरन विवाह कर दे रहे हो और कल को बेटी ऐसा कुकृत्य कर दे रही है तब समाज में मान-सम्मान बढ़ थोड़ी जा रहा है? उल्टे समाज में थू-थू ही हो रही है कि फलाने की बेटी ने ये किया है। इसमें मैं दोषी नहीं बता रहा किंतु आप इसी समाज की इसी इज्ज़त की खातिर अपनी बेटी का प्रेम विवाह अस्वीकार करते हैं और फिर परिणाम में ये मिलता है तो सम्मान रह कहां जाता है? अतः माता-पिता को चाहिए कि सामाजिक ढकोसलों से पहले अपने परिवार की स्थिति और उसकी खुशी को प्राथमिकता दें। समाज ना कभी किसी का हुआ है और ना कभी होगा।
ऐसे मामले भी देखे हैं जहां माता-पिता ने बेटी के प्रेम-विवाह करने पर उससे नाता रिश्ता तोड़ लिया और बुढ़ापे में असहाय हो गये तो समाज किसी काम नहीं आया, तब वही बेटी-दामाद आगे आये और सेवा की। तो सबसे पहले अपने परिवार की खुशियां देखें। ये नहीं कि किसी के भी पल्ले बांध दें पर एक बार बच्चों की बात सुननी तो चाहिए फिर यथासंभव कहीं खुद समझना चाहिए और कहीं बच्चों को समझाना चाहिए।
और लड़कियों को चाहिए कि अपने लिए उचित समय पर आवाज उठायें। विवाह के पश्चात माता-पिता या अन्य किसी को दोषी बताकर पति की हत्या करने से कुछ नहीं मिलेगा। और कितनी भी प्लानिंग कर लो हत्या में पकड़ी ही जाओगी, कोई मान सम्मान कुछ नहीं मिलेगा, एक दिन भी चैन नहीं मिलेगा। अपने प्रेमी को समझें या समझायें, जब माता-पिता ना सुनें तो उनसे बात करके समझाने की कोशिश करें। फिर भी ना हो तो जो हिम्मत विवाह के बाद हत्या में दिखाती हो वो विवाह पूर्व दिखाओ और कर लो अपने प्रेमी से विवाह, या फिर माता-पिता की माननी है तो विवाह बाद सबकुछ भूलकर अपने पति और उसके परिवार पर ध्यान दो। पति या ससुराल से कोई समस्या है तो कानूनन तलाक़ लेकर जिसके संग रहना है रहो किंतु ऐसा कुकृत्य करके नारी के नाम को कलंकित ना करो।
ऐसी हजारों लड़कियां हैं जिनकी शादी उनके प्रेमी से ना होकर पारिवारिक या सामाजिक दबाव में कहीं और कर दी गई और उन्होंने उसको अपनी नियति मानकर सफल वैवाहिक जीवन का निर्वाह किया और कर रही हैं। उन्होंने अपने प्रेमी को भी समझाया कि नियति को यही स्वीकार था अब मेरा परिवार दूसरा है अतः मुझसे किसी संबंध की आशा ना करो और तुम भी अपने जीवन में आगे बढ़ो। कुछ प्रेमियों ने भी ऐसा ही किया। यही परिपक्वता की निशानी है।
कुछ विक्षिप्त प्रेमियों ने कुछ उल्टा-सीधा किया या करने की कोशिश भी की तो ये लड़कियां उनके सामने सिंहनी की तरह खड़ी हो जाती हैं कि मेरे परिवार की तरफ़ आंख उठाकर भी मत देखना वर्ना तुम्हारे सर्वनाश के लिए जो बन पड़ेगा करूंगी। ये होता है कर्तव्य बोध और रिश्तों का सम्मान।
अतः अल्पविकसित नारीवादियों को चाहिए कि फ़ालतू में हर चीज में नारीवाद घुसाकर नारीवाद के अर्थ को इतना संकीर्ण ना बना दें कि लोगों को नारीवाद से घृणा हो जाये।
समाज में अभी भी नारियों के संग अत्याचार हो रहे हैं किंतु ऐसी नारियां और उससे भी अधिक ऐसे नारीवादी सामने आकर घटना को अलग नजरिया दे देते हैं।
समाज को अभी भी नारीवाद की जरुरत है पर ऐसे वाले की नहीं जहां औरत की हर ग़लती उसके औरत होने की वजह से नारीवाद का तिरपाल ओढ़ाकर ढकने की कोशिश की जाये।
लेखक: फर्जी इंजीनियर