बाबर को भारत पर हमला करने का न्यौता दौलत खान लोदी ने दिया था ये पत्थर पर लिखा इतिहास है किसी दो कौड़ी के नेता की जुबान नहीं जो पल-पल में बदल जाए। यही शाश्वत सत्य है और ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित है। बाबरनामा का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे वहां कहीं नहीं लिखा है कि संग्राम सिंह "राणा सांगा" ने बाबर को न्योता दिया था। इनसे बड़ा योद्धा तो सिर्फ काल भोज "बप्पा रावल" और राणा कुंभ ही हुए हैं।
बाबरनामा पर ध्यान दिया जाए तो सबसे पहली बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि बाबर द्वारा लिखी गयी हस्तलिखित पोथी किसी के पास उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी बात बाबर की लिखी दैनंदिनी का उसने कुछ नाम रखा भी था या नहीं इस विषय में भी इतिहासकारों में संशय है। जो पोथियाँ मिली हैं और जिनके आधार पर बाबरनामा तैयार हुई हैं, अधिकतर अकबर के समय लिखी गयीं हैं। बाबर ने जो अपनी पोथी की नकल अपने मित्र को दी थी, उसका भी कुछ अता पता नहीं है। जब बाबरनामा ही सवालों के घेरे में हैं, तब उसमें लिखीं बातों पर इतने जोश में सपा नेता संसद में किस आधार पर चिल्ला रहा था?
बाबरनामा में क्या लिखा है? जिस पर बवाल है। इब्राहीम लोदी को हराने के बाद बाबर अपनी दैनंदिनी में लिखता है कि जब हम लोग काबुल में थे, तो राणा सांगा के दूत ने उपस्थित होकर उसकी ओर से निष्ठा प्रदर्शित की थी, और यह निश्चय किया था कि बाबर उस ओर से देहली के समीप पहुँच जाए तो मैं इस ओर से आगरा पर आक्रमण कर दूंगा। मैंने इब्राहीम को पराजित भी कर दिया, देहली तथा आगरा पर अधिकार भी जमा लिया किन्तु इस काफिर के किसी ओर हिलने के चिह्न दृष्टिगत न हुए।
यहाँ बाबर किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में है, वह समझ नहीं पा रहा कि जो दूत आया था वह राणा सांगा ने ही भेजा था या किसी और ने, क्योंकि दूत द्वारा जो रणनीति बतायी गयी थी; वैसा कुछ होता उसे दिखा नहीं।
बाबर नामा में बाबर सांगा और राजपूतो की बहादुरी और युद्ध कौशल की भूरी भूरी प्रसंशा करता हैं।
एक प्रसंग में जब बाबर राजपूतो की बड़ाई करता है तो उसका एक सेनापति बोलता है कि हारने वाले वालो की प्रसंशा क्यों करना ?
बाबर कहता है कि फरगना में मैं भी हारा तो क्या मैं साहसी नहीं हूँ।
इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा की पुस्तक "उदयपुर राज्य का इतिहास" में लिखा है कि पंजाब के हाकिम दौलतखां लोदी ने विक्रम संवत १५८२ में इब्राहिम लोदी से विद्रोह कर बाबर को हिंदुस्तान में बुलाया।
आगे लिखा है - बाबर अपनी दिनचर्या में लिखता है कि राणा सांगा ने भी पहले मेरे पास दूत भेजकर मुझे भारत में बुलाया और कहलाया था कि आप दिल्ली तक का इलाक़ा ले लें और मैं आगरे तक ले लूँ।
स्त्रोत:
उदयपुर राज्य का इतिहास
एक और बात लिखा हुआ है कि इब्राहिम लोदी का शासन कमज़ोर हो चला था और भारत का असल सम्राट राणा सांगा ही था, और भारत में मेरा (बाबर का ) असली मुक़ाबला राणा सांगा से ही होना था।
जब इब्राहिम लोदी का शासन कमज़ोर था तो राणा सांगा उससे लड़ने किसी बाहरी को क्यों बुलायेंगे।
बाबर यह अच्छी तरह जानता था कि हिन्दुस्तान में उसका सबसे भयंकर शत्रु महाराणा सांगा था, इब्राहीम लोदी नहीं। यदि बाबर न आंता तो भी इब्राहीम लोदी तो नष्ट हो जाता। महाराणा की बढ़ती हुई शक्ति और प्रतिष्ठा को वह जानता था। उसे यह भी निश्चय था कि महाराणा से युद्ध करने के दो ही परिणाम हो सकते हैं-या तो
वह भारत का सम्राद हो जाय, या उसकी सब आशाओं पर पानी फिर जाय और उसे वापस काबुल जाना पड़े।
राणा सांगा और बाबर का आमना सामनाओझा जी अपनी पुस्तक में विवरण देते हैं कि बाबर बहुत उदास हो गया था और बेचैनी डूबा हुआ था उसने प्रतिज्ञा लिया कि शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा।
"सरदारो और सिपाहियो ! प्रत्येक मनुष्य, जो संसार में आता है, अवश्य मरता है; जब हम चले जायंगे तब एक ईश्वर ही बाकी रहेगा, जो कोई जीवन का भोग करने बैठेगा उसको अवश्य भरना भी होगा, जो इस संसाररूपी सराय में आता है उसे एक दिन यहां से विदा भी होना पड़ता है, इसलिये बदनाम होकर जीने की अपेक्षा प्रतिष्ठा के साथ मरना अच्छा है। मैं भी यही चाहता हूं कि कीर्ति के साथ मेरी मृत्यु हो तो अच्छा होगा, शरीर तो नाशवान् है। परमात्मा ने हमपर बड़ी कृपा की है कि इस लड़ाई में हम मरेंगे तो शहीद होंगे और जीतेंगे तो ग़ाज़ी कहलावेंगे, इसलिये सबको कुरान हाथ में लेकर क्रसम खानी चाहिये कि प्राण रहते कोई भी युद्ध में पीठ दिखाने का विचार न करे"।
सब समय का फेर है ना कभी भारत अविजीत रह सकता था ना उसे जीतने वाले अरब फारसी या तुर्क।
जो तुर्क महान साम्राज्य बना वो यूरोप का मरीज भी बना। जो इस्लामी साम्राज्य अपने पर नाज करता था उसे चंगेज ने अपने घोड़े के टापों तले रौंद दिया।
जिस मुग़ल राजा अकबर की गिनती अब तक के सबसे अमीर 5 लोगो में होती हैं उसी के वंश के औरतो ने बर्तन बेच कर एक टाइम का खाना खाया है। और बाद में तो भूख से बेहाल होकर सडक पर दौड़ लगा दी थी। दुनिया का पहला साम्राज्य इजिप्ट और ग्रीस आज कहाँ हैं देख लो।
कुछ तथाकथित युवा कार्यकर्ता लोग अपने नेता के घटिया बयान के समर्थन में आकर लूसेंट के सामान्य ज्ञान पुस्तक का हवाला दे रहे थे। समझ में आता है इनका बौद्धिक स्तर किस स्तर का है। जिस लोदी को लेकर सपा नेता ने नाम लिया उसके वंश का इतिहास देख लेना चाहिए हिंदुओं के खून से रंगा मिलेगा।
जिस नेता ने महाराणा सांगा पर विवादित टिप्पणी की है, उन्हें जाकर स्कूल में पढ़ना लिखना चाहिए। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में पढ़ाई आरंभ की जा सकती है। पढ़ाई करो और ज्ञान पाओ, ताकि बाद में ये न कह सको कि लोकतंत्र ने भी हमें पढ़ने नहीं दिया।