Saturday, August 16, 2025

जिन्ना, वोट चोरी के आरोप और भारत का विभाजन

1937 के बाद जिन्ना को विश्वास हो चला था उसका उस समय की कांग्रेस के रहते सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना मुश्किल है, उसकी महत्वकांक्षाएं पूरी नहीं हो सकती है, इसलिए बिना पाकिस्तान बनाए उसका Ego संतुष्ट होगा नहीं। और सत्ता के लिए जिन्ना ने पाकिस्तान बनाने की कवायद और तेज कर दी। अब होते हैं 1945-46 के केंद्रीय चुनाव, यहां भी कांग्रेस को ज्यादातर राज्यों में बहुत प्राप्त होता है और कांग्रेस को 102 व मुस्लिम लीग को 30 सीटें मिलती है।

अब चूंकि 30 सीटों के साथ मुस्लिम लीग पार्टी और जिन्ना का सत्ता में आने का सपना पूरा नहीं होता सकता था इसलिए उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, बिहार व बंगाल में तथाकथित रूप से उस समय कि कांग्रेस पर प्रशासन की मदद से "मतदाता सूची में बदलाव, सरकारी अफसरों के पक्षपात और तथाकथित रूप से वोट चोरी" के आरोप लगाए। लीन ने समुदाय विशेष से कहां कि 'आपका वोट अभी सुरक्षित नहीं है तो आगे क्या होगा' और अविश्वास की खाई को और गहरा कर दिया।

जिन्ना ने 17 जनवरी 1946 को भाषण दिया और "Glancy-Khizar Axis" (सरकार व उस समय के प्रशासन/संवैधानिक संस्थाओं जैसा कुछ का गठजोड़) की निंदा की, प्रशासन द्वारा लीग की चुनावी गतिविधियों में अवैध हस्तक्षेप का आरोप लगाया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया।

इन्हीं सब घटनाओं ने आगे चलकर "डायरेक्ट एक्शन डे" जिसमें हजारों भारतीय मारे गए व गृहयुद्ध जैसी कंडिशन बन गई के होने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पाकिस्तान की मांग को और तेज कर दिया व अंततः भारत का विभाजन होकर पाकिस्तान बना और जिन्ना के सांप्रदायिक ईगो को संतुष्टि मिली।

खैर, वो समय दूसरा था ये समय दूसरा हैं। किरदारों व दलों के नाम बदल चुके हैं, लेकिन भावनाएं अभी भी वो ही है। लेकिन बढ़िया बात ये है कि अब हमारे पास इतिहास से मिले सबक है इसलिए हमें "इतिहास को स्वयं को दोहराने" से रोकना होगा। हां, मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं। किसी egoistic व सत्ता को अपनी वंशानुगत जागीर समझाने वाले के लिए फिर से भारत को खंडित नहीं होने दिया जा सकता है।
Peace 🕊️ 

~पुष्पराज आर्या 

Sunday, August 3, 2025

वोट के लिए बीवी और देश बेचते नेता

ईश्वर देख रहा है चारों तरफ अंधकार फैला हुआ है।
देश में वोट के लिए देश बेचते तो बहुत से नेता देखे लेकिन बीवी का सौदा करने वाला नेता पहली बार देखा है। नेता अपनी मां और बीवी को गल्ले पर बैठा देते हैं वोट पाने के लिए। कोई मौलवी नंगी बोलता है तो कोई मुस्लिम नेता अंतःवस्त देखता है पर नपुसंक नेता प्रेम और सौहार्द देखेगा। वाह नेताजी वाह क्या सोच है आपकी .. अपनी अर्द्धांगिनी को परोसने में नहीं हिचकेंगे ये कल को।
इस्लामिक आतंकवादी पतलून खोलकर गोली मारते हैं क्योंकि हिंदुओं का निजी अंग भंग नहीं होता अर्थात कटा नहीं होता है मुस्लिमों की तरह। कुछ लोग इस बात को छिपाकर आसानी से बकते हैं कि भारतीय देखकर गोली मारा..!
फिल्मी अभिनेता अभिनय करते हुए उंगलियों को पत्थर से कूचकर कहता है "देख ये तेरा खून ये मेरा खून अब बोल कौन सा खून मुस्लिम का है कौन सा हिंदू का है"
 अबे मियां मारने वाला पैंट खोलता है निजी अंग पर कटा निशान देखता है । बकवास करना बंद करो खून को लेकर.. सभी का खून शामिल है इस मिट्टी में बोलने वालों ये हिंदुओं के बाप दादा पूर्वजों का हिन्दुस्थान है.. तुम भारत माता की जय नहीं बोल सकते छाती में दांत गड़ाए बैठें हो वो अलग।
"इनका हिसाब चुकाते चुकाते हम खाक हो  जाएंगे" ब्रिगेडियर प्रताप के शब्दों में कुछ तो दम है। पर वातानुकूलित कमरे में बैठकर नीतियां निर्धारित करने वालों को इससे क्या लेना देना है।
 किसी को फर्क नहीं पड़ता है कौन मरता है। हजारो लोगों का नरसंहार हो चुका है पैंट खोलकर फ़िर ये कहते हैं सब भारतीय थे.. अरे चुप रहो ऐसी बकवासे सुनकर कान से खून निकलने लग जाता है। खून से याद आया इन लोगो का खून ही है न कि पानी बहता है रगो में?
बंद करो शांति और अमन की आशा वाली भाषा। भेड़िया को गाजर खिलाने से वो शाकाहारी नहीं हो जाता है वो मारकर खरगोश ही खाएगा। उसकी प्रवृत्ति ऐसी है वो खून ही पियेगा।
 कोई ये कह रहा था कि दादी से नाक मिलती है तो कटर हिन्दू शेरनी है । वो भारत को एक हिन्दू राष्ट्र समझती है इसलिए उन्होंने मारे गए लोगों को हिन्दू ना बताकर केवल भारतीय बताया, इनके लिए हिन्दू और भारतीय पर्यायवाची है। जो कि हमारे लिए भी होने चाहिए, सभी भारतीय हिन्दू ही है। सबका DNA हिन्दू है। इनकी इस वैज्ञानिक सोच व दार्शनिकता के लिए उनको मेरे वार्ड का पाषर्द बनाया जाना चाहिए।
बस भैया ये बताओ पैंट खोलकर कैसे पता चलेगा कि आप भारतीय हो?
... वो भारतीय भारतीय कर रही है अपने को बुद्धिजीवी दिखाने के लिए उसकी जिस दादी से नाक मिलती है उसी दादी के राज में उसी नाक के नीचे से खालिस्तानियों ने धर्म पूछकर बस से उतारकर और छात्रवासो में घुसकर गोली मारी थी हिंदुओं को।
बात यहां तक नहीं बढ़ती पर सत्ता का नशा है वो उतरा नहीं तभी मंदबुद्धि कहता है कि मेरे दादी के सामने चायवाला 50 पर्सेंट भी नहीं.. इनके चाटुकार खुलेआम कहते हैं कि लाल चौक पर जाने में फटती थी.! चाय वाले में जिगरा था लाल चौक पर झंडा गाड़ आया जहां तेरे चाटुकारो की फटती थी जाने में।

सदन चले या न चले पर सैनिक का ऑपरेशन नहीं रुकता है । सदन चलने में लाखों करोड़ों रुपया बहता है पानी की तरह पर ऑपरेशन में सैनिक का खून बहता है।
ऑपरेशन नहीं रुकता अंजाम तक पहुंचने तक। सदन स्थगित हो जाता है बिना कोई चर्चा के महीनों तक और दो कौड़ी का नेता कहता है कि ऑपरेशन कल ही क्यों हुआ?
 कश्मीर का ऑपरेशन है रामपुर का भैंसा खोजों अभियान नहीं। गिड़गिड़ाते रहो।
चीन बड़ा दुश्मन है अपने बाप की तरह दोहराते रहो। 

नहीं मतलब कि थोड़ी भी शर्म है तो गटर के चुल्लू भर पानी में डूबे मरो।

सब साबित करने में लगे हैं कि "हमारे वाले नेता (महिला-पुरूष सभी) ने सामने वाले को पेल दिया, हमारे नेता ने महफील लूट ली।" उधर संसद में खुद तथाकथित विपक्षी जननेता व सरकारी विश्वगुरु के नेतृत्व में उनके सांसद खुद मनोरंजन का माहौल बनाकर बैठे थे।

Tuesday, July 29, 2025

बाबर के संतानों के नाम संदेश

बाबर को भारत पर हमला करने का न्यौता दौलत खान लोदी ने दिया था ये पत्थर पर लिखा इतिहास है किसी दो कौड़ी के नेता की जुबान नहीं जो पल-पल में  बदल जाए। यही शाश्वत सत्य है और ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित है।  बाबरनामा का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे वहां कहीं नहीं लिखा है कि संग्राम सिंह "राणा सांगा" ने बाबर को न्योता दिया था। इनसे बड़ा योद्धा तो सिर्फ काल भोज "बप्पा रावल" और राणा कुंभ ही हुए हैं।

बाबरनामा पर ध्यान दिया जाए तो सबसे पहली बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि बाबर द्वारा लिखी गयी हस्तलिखित पोथी किसी के पास उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी बात बाबर की लिखी दैनंदिनी का उसने कुछ नाम रखा भी था या नहीं इस विषय में भी इतिहासकारों में संशय है। जो पोथियाँ मिली हैं और जिनके आधार पर बाबरनामा तैयार हुई हैं, अधिकतर अकबर के समय लिखी गयीं हैं। बाबर ने जो अपनी पोथी की नकल अपने मित्र को दी थी, उसका भी कुछ अता पता नहीं है। जब बाबरनामा ही सवालों के घेरे में हैं, तब उसमें लिखीं बातों पर इतने जोश में सपा नेता संसद में किस आधार पर चिल्ला रहा था?

बाबरनामा में क्या लिखा है? जिस पर बवाल है। इब्राहीम लोदी को हराने के बाद बाबर अपनी दैनंदिनी में लिखता है कि जब हम लोग काबुल में थे, तो राणा सांगा के दूत ने उपस्थित होकर उसकी ओर से निष्ठा प्रदर्शित की थी, और यह निश्चय किया था कि बाबर उस ओर से देहली के समीप पहुँच जाए तो मैं इस ओर से आगरा पर आक्रमण कर दूंगा। मैंने इब्राहीम को पराजित भी कर दिया, देहली तथा आगरा पर अधिकार भी जमा लिया किन्तु इस काफिर के किसी ओर हिलने के चिह्न दृष्टिगत न हुए।


यहाँ बाबर किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में है, वह समझ नहीं पा रहा कि जो दूत आया था वह राणा सांगा ने ही भेजा था या किसी और ने, क्योंकि दूत द्वारा जो रणनीति बतायी गयी थी; वैसा कुछ होता उसे दिखा नहीं।

 बाबर नामा में बाबर सांगा और राजपूतो की बहादुरी और युद्ध कौशल की भूरी भूरी प्रसंशा करता हैं।
एक प्रसंग में जब बाबर राजपूतो की बड़ाई करता है तो उसका एक सेनापति बोलता है कि हारने वाले वालो की प्रसंशा क्यों करना ?
बाबर कहता है कि फरगना में मैं भी हारा तो क्या मैं साहसी नहीं हूँ।
इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा की पुस्तक  "उदयपुर राज्य का इतिहास" में लिखा है कि  पंजाब के हाकिम दौलतखां लोदी ने विक्रम संवत १५८२ में इब्राहिम लोदी से विद्रोह कर बाबर को हिंदुस्तान में बुलाया।
आगे लिखा है - बाबर अपनी दिनचर्या में लिखता है कि राणा सांगा ने भी पहले मेरे पास दूत भेजकर मुझे भारत में बुलाया और कहलाया था कि आप दिल्ली तक का इलाक़ा ले लें और मैं आगरे तक ले लूँ।
स्त्रोत: उदयपुर राज्य का इतिहास

एक और बात लिखा हुआ है कि इब्राहिम लोदी का शासन कमज़ोर हो चला था और भारत का असल सम्राट राणा सांगा ही था, और भारत में मेरा (बाबर का )  असली मुक़ाबला राणा सांगा से ही होना था।
जब इब्राहिम लोदी का शासन कमज़ोर था तो राणा सांगा उससे लड़ने किसी बाहरी को क्यों बुलायेंगे।
बाबर यह अच्छी तरह जानता था कि हिन्दुस्तान में उसका सबसे भयंकर शत्रु महाराणा सांगा था, इब्राहीम लोदी नहीं। यदि बाबर न आंता तो भी इब्राहीम लोदी तो नष्ट हो जाता। महाराणा की बढ़ती हुई शक्ति और प्रतिष्ठा को वह जानता था। उसे यह भी निश्चय था कि महाराणा से युद्ध करने के दो ही परिणाम हो सकते हैं-या तो
वह भारत का सम्राद हो जाय, या उसकी सब आशाओं पर पानी फिर जाय और उसे वापस काबुल जाना पड़े।

राणा सांगा और बाबर का आमना सामना
ओझा जी अपनी पुस्तक में विवरण देते हैं कि  बाबर बहुत उदास हो गया था और बेचैनी डूबा हुआ था उसने प्रतिज्ञा लिया कि शराब को कभी हाथ नहीं लगाएगा।
 "सरदारो और सिपाहियो ! प्रत्येक मनुष्य, जो संसार में आता है, अवश्य मरता है; जब हम चले जायंगे तब एक ईश्वर ही बाकी रहेगा, जो कोई जीवन का भोग करने बैठेगा उसको अवश्य भरना भी होगा, जो इस संसाररूपी सराय में आता है उसे एक दिन यहां से विदा भी होना पड़ता है, इसलिये बदनाम होकर जीने की अपेक्षा प्रतिष्ठा के साथ मरना अच्छा है। मैं भी यही चाहता हूं कि कीर्ति के साथ मेरी मृत्यु हो तो अच्छा होगा, शरीर तो नाशवान् है। परमात्मा ने हमपर बड़ी कृपा की है कि इस लड़ाई में हम मरेंगे तो शहीद होंगे और जीतेंगे तो ग़ाज़ी कहलावेंगे, इसलिये सबको कुरान हाथ में लेकर क्रसम खानी चाहिये कि प्राण रहते कोई भी युद्ध में पीठ दिखाने का विचार न करे"।

सब समय का फेर है ना कभी भारत अविजीत रह सकता था ना उसे जीतने वाले अरब फारसी या तुर्क।
जो तुर्क महान साम्राज्य बना वो यूरोप का मरीज भी बना। जो इस्लामी साम्राज्य अपने पर नाज करता था उसे चंगेज ने अपने घोड़े के टापों तले रौंद दिया।
जिस मुग़ल राजा अकबर की गिनती अब तक के सबसे अमीर 5 लोगो में होती हैं उसी के वंश के औरतो ने बर्तन बेच कर एक टाइम का खाना खाया है। और बाद में तो भूख से बेहाल होकर सडक पर दौड़ लगा दी थी। दुनिया का पहला साम्राज्य इजिप्ट और ग्रीस आज कहाँ हैं देख लो।
कुछ तथाकथित युवा कार्यकर्ता लोग अपने नेता के घटिया बयान के समर्थन में आकर लूसेंट के सामान्य ज्ञान पुस्तक का हवाला दे रहे थे। समझ में आता है इनका बौद्धिक स्तर किस स्तर का है। जिस लोदी को लेकर सपा नेता ने नाम लिया उसके वंश का इतिहास देख लेना चाहिए हिंदुओं के खून से रंगा मिलेगा।

जिस  नेता ने महाराणा सांगा पर विवादित टिप्पणी की है, उन्हें जाकर स्कूल में पढ़ना लिखना चाहिए। पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, किसी भी उम्र में पढ़ाई आरंभ की जा सकती है। पढ़ाई करो और ज्ञान पाओ, ताकि बाद में ये न कह सको कि लोकतंत्र ने भी हमें पढ़ने नहीं दिया।

Sunday, June 29, 2025

पक्षियों के साथ सुकून मिलता है

 गर्मी का मौसम है.. हद से ज्यादा ही पड़ रही है इस साल। लोगो का कहना है मई तो गई जून तो लगता है भून कर ही दम लेगा। पर्यावरण में बदलाव तो देखने को मिला ही है कुछ सालों में । इसमें कोई दो राय नहीं है। लाखों पेड़ कटे हैं चौड़ी सड़के बनाने के लिए। कुछ तो असर पड़ना ही था इसका।  हमारा तो फिर भी सही है हम लोग सक्षम हैं पर पशु पक्षियों की तो हालत खराब हो जाती हैं। खासकर उन पक्षियों की जो पास के तालाब और पेड़ों पर निर्भर रहते हैं। दाना पानी का छत या घर के आंगन में रख देना चाहिए तरह तरह के पक्षी आते जाते रहते हैं। मै भी यही करता हूं। अच्छा लगता है इनका पक्षियों का आना जाना चहचहाना।
ये बहुत व्याकुल थी जब इसकी नजर इस जल पात्र पड़ी तो इसने बहुत राहत महसूस किया और इधर उधर चहकने लगी।

सबसे खास बात ये कि ये समय से आती है इसका समय तय रहता है । एक दम सुबह में यही दिखती है।
ये बहुत ही चतुर और चालाक चिड़िया है। इसकी गतिविधियों पर नजर रखने में बहुत आनंद मिलता है।


लंबी पूछ वाला  पक्षी

अंग्रेजी में इसे Rufous treepie कहते हैं। कोटरी" या "टका चोर" भी कहा जाता है। इसे "हांडी चंचा" भी कहा जाता है। इस चिड़िया के बारे में कहा जाता है कि वह बाघ के मुंह में घुस के दांतों में फंसे मांस को निकाल 
कर भोजन करती है । 
ये सच में बहुत चालाक पक्षी है। आता है तो चारों झांकता ताकता है और फिर पानी पीकर उड़ जाता है। 
एक दिन देखा पंखे पर बैठा हुआ है चोंच से कुछ दबाया हुआ था ।

फिर उड़कर छज्जे से निकले पिलर पर जाकर बैठ गया । साफ- साफ दिख रहा है इसके मुह में कुछ है। 
फिर अचानक से कुछ नीचे गिरा था । पता नहीं चला था जब फुर्र हो गया तब देखा। एक फूटा अंडा था। 
फिर आया घर की चारदीवारी पर बैठ गया।
इसकी आवाज मैने बिल्कुल भी नहीं सुनी । बड़ा ही शान्त नजर आय ये। बड़ा  ही सुंदर पक्षी।  
ये एक अद्भुत पल था मेरे लिए इस तरह से इसे देखना। ऐसा दृश्य जिसे अपने मोबाइल कैमरे में कैद में कर लिया। ये पक्षी मुझे। फिर शाम को छत पर भी दिखा। 
भुअरी चिड़िया

भरी दोपहरीया में इनका जमावड़ा जरूर लगा रहा है कोई पक्षी आए या नहीं ये सब चहचहाते हुए दिखेंगे।
देखिए कैसे छज्जे से निकले छड़ पर बैठी हुई है ये चिड़िया।
बरामदे में लगा पानी का नल खोल देता हु कुछ देर तक तो पानी लग जाता है और छपाक छपाक करने में बहुत आनंद आता है। गर्मियों से इन्हें राहत मिलता है। 
पानी में बैठकर जब ये अपना पंख फड़फड़ाती हैं तो देखते बनता हैं। इन पक्षियों के अजीब सा सुकून मिलता है जो और दुनिया के किसी भी कोने या हिस्से में नहीं 

घर के चार दिवारी पर इक्कठे बैठती हैं तो लगता है घर की सुरक्षा इनके जिम्में हैं कोई आ नहीं सकता बाहर इनके इजाजत के।
इस दीवार पर बैठकर इनकी चहचहाहट खूब तेज हो जाती है। इनकी नजरे बहुत तेज होती है भोजन की तलाश में। कुछ न कुछ ये ताकते झांकते ही रहते हैं।

बगल वाले घर में एक छोटा सा आम का और अमरूद का पेड़ लगा हुआ है इनके पकते ही फोड़ फोड़कर इनका खाना शुरू हो जाता है।
एक दम भोर में जब मैं किताबें खोलकर पढ़ रहा होता हूं तो तब एक दो पक्षी हमेशा आते हैं खिड़की पर खुट खुट करने ताकि मैं नींद में न हो जाऊं।

उफ्फ तुम्हारा यू आकर पास बैठ जाना... सुबह सुबह खिड़की पर एक खट खट की आवाज आती है मानो आज तो कांच फूट ही जाएगा .... चोंच की ठोकरों से इतनी तेज आवाज आती है लगातार पढ़ने का लय टूट जाता है छोटा सा विश्राम मिल जाता है ... राहत और सुकून महसूस होता है जीवन में बहुत है करने को देखने को....तुम उड़कर दुनिया देखती हो मैं भी एक दिन उडूंगा फर्क इतना होगा की तुम्हारे पंखों की उड़ान है मेरी हौसलों की उड़ान।

कुछ पक्षियों आना जाना ही लगभग फोटो खिंचवाने के लिए होता है।
डव 🕊️ सिर्फ छत पर दिखते हैं सबसे अधिक तब जब छत गेहूं सूखने के लिए रखा हो। 
ये पक्षी हमेशा जोड़े में दिखेंगे या जब भी आएंगे एक साथ कई दिखेंगे।


छोटकी चिरइया 🐦‍⬛ 
इनका भी क्या ही कहना ये तो बिजली के तार खंभे हर जगह बैठकर चाय चाय चहचहाती हैं।
इनका अपना अलग ही समूह रहता है इक्कठे ये आती हैं इक्कठे जाती हैं।
इनका अपना अलग ही संसार है। खुले आसमान में कही भी उड़ चले और ऊंचाई पर बैठे गए।
सुबह शाम पक्षियों को आना जाना लगा रहता है। अब बारिश का मौसम शुरू हो चुका है तो थोड़ा कम ही आना जाना लगा रहता है। 

उड़ता हुआ आसमान में अब सूरज भी डूबने को है। सब धीरे धीरे अपने ठिकाने पर ऐसे ही निकलते हैं। शानदार नजारा देखने को मिलता है। 
देखा जाए तो सारा संसार इन पक्षियों का है। जहां मन किया तब घूम आएं। मौसम को देखते हुए तमाम देश विदेश के पक्षियों का आना जाना लगा ही रहता है। इन्हें किसी भी तरह के नियमों/बंदिशों का सामना नहीं करना पड़ता है। पंखों की उड़ान ही काफी है इस दुनिया जहां को के लिए।
इन पक्षियों पर अनेक कविताएं कहानियां लिखने वाले लिखकर चले गए हैं। इसी तरह मैने एक नए लेखक की पुस्तक पढ़ी थी "बनकिसा"  ये बनकिस्सा- स्टोरीज ऑफ किंगफिशर वाकई में पढ़ने लायक पुस्तक है। पुस्तक के लेखक  सुनील कुमार "सिंक्रेटिक" बढ़िया लगा पढ़कर कुछ नया था इसमें..किंगफिशर "मच्छराजा" किस्से सुनाता है अपने मित्र जलकाक और कछुआ को..।


जब हम लोग छोटे थे बचपन में दुर्दशन पर एक कार्यक्रम आता था "जंगल टेल्स" बिल्कुल इसी तरह से कुछ लगा इनका पुस्तक। पढ़ने को तो सबने "चंपक" भी पढ़ा है । पर नए लेखकों में इनका कार्य सराहनीय है।
जीवन में बहुत सारे किस्से मिलेंगे सुनने को पक्षियों के किस्से कमाल के होते हैं। अगर पक्षी इंसानों की तरह बोल पाते तो दुनिया अनगिनत रहस्यों का पता चल जाता। और भी बहुत कुछ होता । कुछ पक्षियों को तो हम सुनते और देखते ही हैं हमारी बोली का नकल उतारते हुए।
उत्तर दक्षिण हर तरफ इनकी नजरे होती हैं। एक दम समझदारी से भरी हुईं। कुटिलता तो कूट कूट कर भरी हुई है इनमें। इनकी नजरे वो देखती हैं जो कोई देख पाता होगा।
एक दम से सावधान मुद्रा में। इनका हाव भाव बहुत कुछ कहता है। समय के साथ इनकी समझ कई गुना बढ़ी ही है। इसे नकारा नहीं जा सकता है।  पक्षियों से बहुत कुछ सिखा जाता सकता है। जैसे समय के साथ चलना और विभिन्न स्थानों के अनुसार खुद को ढालना । वहीं बसेरा हो जहां खर्चा पानी निकल सके। जीवन जबतक है तब तक मस्त चलता रहे । तनाव मुक्त रहना है तो इन पक्षियों को देखिए और समझिए। इनका जीवन कठिन ही है।
ये जब मैं गांव में था तब खींचा था लगभग 5_6 साल हो गए होंगे।
पक्षियों से सीखिए मेहनत करना और रुकना नहीं है तिनका तिनका बीन बटोर कर घोंसला बनाना आसान नहीं है अगर आंधियों में वो पेड़ टूटकर गिर जाए तो। अस्तित्व में रहने के लिए जो बन जाए वो करना चाहिए। आसान नहीं है इनके लिए भी शिकारियों और सांपों से खुद और अंडों को बचाना।  एक बात याद रखिए इन पक्षियों को आजाद रहने दीजिए पालने से बचिए। पिंजरे में कैद कोई नहीं रहना चाहेगा। इनका जब मन करेगा आती जाती रहेंगी। ये पूरे विश्व का भ्रमण करती हैं आप भी करिए अपने पहचान को जिंदा रखते हुए।